कक्षा 07 इतिहास पाठ 1 हर्षवर्धन और तत्कालीन समाज Notes & Important Question Answer
Chapter Notes
सम्राट हर्षवर्धन पुष्यभूति वंश के शासक थे। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत छोटे-छोटे राज्यों में टूट गया। इसी समय हूणों के आक्रमण ने स्थिति को और अधिक खराब कर दिया। ऐसे समय में पुष्यभूति ने थानेश्वर में पुष्यभूति नामक वंश की स्थापना की।
पुष्यभूति वंश के शासक —
नरवर्धन, राज्यवर्धन तथा आदित्य वर्धन ( 505 ई. – 580 ई. ) – हर्षवर्धन के कवि बाणभट्ट की रचना से तथा बांसखेड़ा व मधुबन के ताम्रपत्र अभिलेखों से इन शासकों की जानकारी मिलती है। यह तीनों शासक पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं थे। इसी कारण उन्होंने ‘महाराज’ की उपाधि धारण की।
प्रभाकरवर्धन ( 580 ई. – 605 ई. ) – प्रभाकरवर्धन पुष्यभूति वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक था। उसने ‘महाराजाधिराज’ तथा ‘परम भट्ठारक’ की उपाधि धारण की। बाणभट्ट ने उनकी प्रशंसा में हूणों के लिए ‘शेर’ तथा सिंध देश के लिए ‘ज्वर’ बताया है। उनकी तीन संताने थी- राज्यवर्धन, राज्यश्री तथा हर्षवर्धन।
राज्यवर्धन — प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के बाद 605 ई. में उसका बड़ा बेटा राज्यवर्धन थानेश्वर का राजा बना। उसने भी ‘महाराजाधिराज’ एवं ‘परम भट्ठारक’ की उपाधि धारण की। उसे अपने शासनकाल के शुरुआती दिनों में ही भारी संकट का सामना करना पड़ा। उसे सूचना मिली कि मालवा के शासक देवगुप्त, गौड़ प्रदेश के शासक शशांक तथा वल्लभी के राजा ध्रुवसेन ने संयुक्त रूप से उसके बहनोई कन्नौज के शासक गृहवर्मन मौखरी के साथ युद्ध करके हत्या कर दी तथा उसकी बहन राज्यश्री को बंदी बना लिया। वह तुरंत दस हजार सैनिकों के साथ युद्ध के लिए निकला। उसने मालवा के शासक देवगुप्त को पराजित कर दिया परंतु गौड़ प्रदेश के राजा शशांक ने धोखे से 606 ई. में राजवर्धन की हत्या कर दी।
हर्षवर्धन — हर्षवर्धन का जन्म 4 जून, 590 ई. को थानेश्वर के विशाल राज्य में हुआ। उनकी माता का नाम यशोमती देवी तथा पिता का नाम प्रभाकरवर्धन था। वह सहनशील तथा साहसी एवं प्रतापी राजा था। हर्षवर्धन तीन भाई बहन थे। हर्षवर्धन का बचपन उनकी माता यशोमती के भतीजे ‘भंडी’ के साथ बिता। हर्ष के दरबारी कवि बाणभट्ट की रचना ‘हर्षचरित’ से यह सारी जानकारी मिलती है।
थानेश्वर राज्य में राज्यभिषेक ( 606 ई. – 647 ई. ) — बड़े भाई की मृत्यु के उपरांत 16 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री भंडी के परामर्श से हर्षवर्धन का राज्यभिषेक 606 ई. में थानेश्वर में किया गया। सम्राट हर्षवर्धन के राज्य की प्रथम राजधानी थानेश्वर सरस्वती नदी के किनारे स्थित थी।
कन्नौज की प्राप्ति — राज्यभिषेक के पश्चात हर्षवर्धन ने सबसे पहले अपने शत्रुओं से बदला लिया। उसकी बहन राज्यश्री कारागार से भाग विद्यांचल के जंगलों में चली गई थी। हर्षवर्धन ने दिवाकरमित्र नामक बौद्ध सन्यासी की सहायता से उसे खोज कर महल बुला लिया। बार-बार हमलों के चलते राजश्री के आग्रह पर हर्ष ने थानेश्वर को कन्नौज में मिलाकर अपनी राजधानी कन्नौज को घोषित कर दिया।
हर्षवर्धन की प्रमुख विजय गाथाएं —
प्रांतीय शासन – हर्ष ने साम्राज्य को चलाने के लिए प्रांतों में बांट रखा था। प्रांतों को दी गई शक्तियां सामंतों और महा सामंतों में विभाजित थी जिन्होंने हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली थी। प्रांतीय शासन चलाने वाले लोग अप्रत्यक्ष रूप से अपने अपने प्रांत के मुखिया थे। जिन क्षेत्रों पर खुद हर्षवर्धन राज करता था वह क्षेत्र भुक्ति कहलाते थे। उनके मुखिया को उपारिक किया कुमारमातय कहा जाता था।
स्थानीय शासन – भुक्ति को विश्व में बांटा गया था जिसका नेतृत्व वेश्या पति या आयुक्त करता था। उनकी नियुक्ति स्वयं शासक करता था। विषक आगे पथिक में विभाजित थे जिनकी स्थिति आज के तहसील स्तर के अधिकारी की मानी जाती थी। प्रशासन में सबसे छोटी इकाई ग्राम थी। जिसका प्रधान महतर कहलाता था। कई स्थानों पर उसे ग्रामिक भी कहा जाता था।
राजस्व व्यवस्था —
आय — आय का मुख्य साधन भू-राजस्व था। यह कुल उपज का 1/6 भाग लिया जाता था। इसे ‘भाग’ या ‘उद्रंग’ कहा जाता था। प्रजा स्वेच्छा से राजा को जो उपहार देती थी। वह ‘बलि’ कहलाता था। इसके अतिरिक्त चुंगी कर, बिक्री कर, वन कर आदि थे।
व्यय — हर्षवर्धन अपनी आय को पांच तरह से बांटता था:दान देना – हर्षवर्धन एक दानवीर सम्राट था। उसने नालंदा विश्वविद्यालय को 200 गांव दान कर दिए।
प्रजा हितकारी कार्य – हर्षवर्धन आय से चिकित्सालय, विश्रामगृह, सड़के, पुल-निर्माण, शिक्षा का प्रबंध और पानी के प्रबंध का खर्च उठाया था।
वेतन – हर्षवर्धन के शासन में सेनापति से लेकर साधारण सिपाही को अपने गुजारे के लिए पर्याप्त वेतन दिया जाता था।
सेना पर खर्च – मैं अपनी सेना के लिए अस्त्र-शस्त्र, कवच, कुंडल, घोड़े तथा हाथियों का प्रबंध अपनी आय से ही करता था।
राज परिवार पर खर्च – राज परिवार की जरूरत की वस्तुएं तथा महल की मरम्मत का खर्च भी यहीं से जाता था
सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था —
वर्ण व्यवस्था — उस समय का समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में बटा हुआ था। ब्राह्मण समाज को शिक्षा देते थे तथा पवित्र कार्य पूरे करवाते थे। क्षत्रिय रक्षा का कार्य करते थे। वैश्य व्यापारिक कार्यों में लगे रहते थे और समाज की आवश्यकता पूरी करते थे। शूद्रों का कार्य सेवा करना था।
विवाह — उस समय समाज में अंतरजातीय विवाह मान्य थे। अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह को भी धीरे-धीरे स्वीकृति मिल जाती थी। समाज में बहुविवाह की प्रथा भी प्रचलित थी।
उच्च नैतिक जीवन — उस समय भारतीय पाप पुण्य का सदैव ध्यान रखते थे। यहां ईमानदारी एवं कर्तव्य निष्ठा सदैव बनी रहती थी और अतिथि को भगवान का दर्जा दिया जाता था।
आवास — नगर साधारण एवं निश्चित योजना के अनुसार बनते थे जिसके चारों ओर सुरक्षा के लिए परकोटे बनाए जाते थे। नगरों में कई मंजिलों के भवन होते थे और घरों का निर्माण पत्थर व पकाई गई ईंटो से किया जाता था।
खानपान — उस समय के लोग सादा भोजन करते थे। लोग गेहूं, चावल, घी, दूध, दही, गुड़, शक्कर, सरसों का तेल आदि उनके भोजन के मुख्य अंग थे। प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं होता था। कुछ लोग मांसाहारी भी थे। दालें, सब्जियां और फलों का प्रयोग भी किया जाता था।
आर्थिक व्यवस्था — उस समय के लोगों की आजीविका का मुख्य आधार कृषि था। हर्षचरित के अनुसार चावल, गेहूं, ईख आदि के साथ सेब और अंगूर भी उगाए जाते थे। उस समय कुछ शहर अपने व्यापार के लिए काफी प्रसिद्ध और समृद्ध हो गए थे जैसे थानेश्वर उज्जैनी और कन्नौज। उस समय कपड़ा उद्योग, चमड़ा उद्योग, बर्तन उद्योग एवं औजार उद्योग व्यापार के लिए प्रमुख उद्योग थे।
हर्षवर्धन का चरित्र —
हर्षवर्धन के चरित्र, सफलताओं व उपलब्धियों का वर्णन बाणभट्ट द्वारा रचित ‘हर्षचरित’ में मिलता है।
उत्तर -
निम्नलिखित कथनों में सही (✓) अथवा गलत (X) का निशान लगाओ
लघु प्रश्न :
प्रश्न 1. हर्षचरित क्या है और यह किसने लिखा?
उत्तर – हर्षचरित् एक ग्रंथ है जिसकी रचना बाणभट्ट ने की थी।
प्रश्न 2. हर्षवर्धन के शासन काल के बारे में जानकारी देने वाले स्रोत कौन से हैं?
उत्तर - हर्षवर्धन के शासनकाल की जानकारी हमें बाणभट्ट द्वारा रचित ‘हर्षचरित’ तथा ह्वेनसांग द्वारा लिखित यात्रा वृतांत ‘सी-यू-की’ से मिलती है।
प्रश्न 3. गौड़ राज्य का अधिकरण करने के लिए हर्षवर्धन की क्या मंशा थी?
उत्तर - गौड़ राज्य के शासक शशांक ने बाकी राजाओं के साथ मिलकर उसके बहनोई कन्नौज के शासक के गृहवर्मन मौखरी के साथ युद्ध करके उसकी हत्या कर दी और उसकी बहन राज्यश्री को बंदी बना लिया। इसके पश्चात राजा शशांक ने धोखे से उसके भाई राज्यवर्धन की भी हत्या कर दी थी। इन सब घटनाओं से हर्षवर्धन बहुत नाराज था और उसको अपना दुश्मन मानता था। इसके लिए उसने गौड़ राजा का अधिकरण करने के लिए भंडी को सेना के साथ गौड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजा परंतु भंडी और सेना उसको पूरी तरह से दमन नहीं कर सके। बाद में हर्षवर्धन ने कामरूप के राजा भास्करवर्मन से संधि कर ली तथा उन दोनों ने मिलकर शशांक को बुरी तरह पराजित किया और अपना प्रतिशोध पूरा किया।
प्रश्न 4. राज्याभिषेक के बाद राजा हर्षवर्धन ने सबसे पहले क्या कार्य किया? इस कार्य में उनकी सहायता किसने की?
उत्तर - राज्यभिषेक के पश्चात हर्षवर्धन ने सबसे पहले उसकी बहन राज्यश्री को ढूंढा जो कारागार से भाग विद्यांचल के जंगलों में चली गई थी। हर्षवर्धन ने दिवाकरमित्र नामक बौद्ध सन्यासी की सहायता से उसे खोज कर महल बुला लिया।
आइए विचार करें:
प्रश्न 1. हर्षवर्धन एक विशाल साम्राज्य बनाने में सफल रहा इस कथन को तर्क सहित सिद्ध करें।
उत्तर - हर्षवर्धन एक विशाल साम्राज्य बनाने में सफल रहा इस कथन को इस प्रकार सिद्ध किया जा सकता है कि हर्षवर्धन ने लगभग जितने युद्ध लड़े वह सभी जीते। उसने पूरा उत्तर भारत अपने कब्जे में ले लिया था। हर्षवर्धन ने शशांक को हराकर गौड़ प्रदेश को जीत लिया। इसी प्रकार ध्रुवसेन द्वितीय को हराकर वल्लभी पर विजय प्राप्त की। कामरूप के शासक भास्करवर्मन को पराजित करके हर्ष ने कामरूप पर भी अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। इसी तरह हर्ष ने सिंध, कश्मीर और नेपाल पर भी विजय प्राप्त की। हर्ष की अंतिम विजय गंजम (उड़ीसा) की थी।
प्रश्न 2. हर्षवर्धन साम्राज्य में आय और व्यय के स्त्रोत क्या थे?
उत्तर -
सम्राट हर्षवर्धन पुष्यभूति वंश के शासक थे। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत छोटे-छोटे राज्यों में टूट गया। इसी समय हूणों के आक्रमण ने स्थिति को और अधिक खराब कर दिया। ऐसे समय में पुष्यभूति ने थानेश्वर में पुष्यभूति नामक वंश की स्थापना की।
पुष्यभूति वंश के शासक —
नरवर्धन, राज्यवर्धन तथा आदित्य वर्धन ( 505 ई. – 580 ई. ) – हर्षवर्धन के कवि बाणभट्ट की रचना से तथा बांसखेड़ा व मधुबन के ताम्रपत्र अभिलेखों से इन शासकों की जानकारी मिलती है। यह तीनों शासक पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं थे। इसी कारण उन्होंने ‘महाराज’ की उपाधि धारण की।
प्रभाकरवर्धन ( 580 ई. – 605 ई. ) – प्रभाकरवर्धन पुष्यभूति वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक था। उसने ‘महाराजाधिराज’ तथा ‘परम भट्ठारक’ की उपाधि धारण की। बाणभट्ट ने उनकी प्रशंसा में हूणों के लिए ‘शेर’ तथा सिंध देश के लिए ‘ज्वर’ बताया है। उनकी तीन संताने थी- राज्यवर्धन, राज्यश्री तथा हर्षवर्धन।
राज्यवर्धन — प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के बाद 605 ई. में उसका बड़ा बेटा राज्यवर्धन थानेश्वर का राजा बना। उसने भी ‘महाराजाधिराज’ एवं ‘परम भट्ठारक’ की उपाधि धारण की। उसे अपने शासनकाल के शुरुआती दिनों में ही भारी संकट का सामना करना पड़ा। उसे सूचना मिली कि मालवा के शासक देवगुप्त, गौड़ प्रदेश के शासक शशांक तथा वल्लभी के राजा ध्रुवसेन ने संयुक्त रूप से उसके बहनोई कन्नौज के शासक गृहवर्मन मौखरी के साथ युद्ध करके हत्या कर दी तथा उसकी बहन राज्यश्री को बंदी बना लिया। वह तुरंत दस हजार सैनिकों के साथ युद्ध के लिए निकला। उसने मालवा के शासक देवगुप्त को पराजित कर दिया परंतु गौड़ प्रदेश के राजा शशांक ने धोखे से 606 ई. में राजवर्धन की हत्या कर दी।
हर्षवर्धन — हर्षवर्धन का जन्म 4 जून, 590 ई. को थानेश्वर के विशाल राज्य में हुआ। उनकी माता का नाम यशोमती देवी तथा पिता का नाम प्रभाकरवर्धन था। वह सहनशील तथा साहसी एवं प्रतापी राजा था। हर्षवर्धन तीन भाई बहन थे। हर्षवर्धन का बचपन उनकी माता यशोमती के भतीजे ‘भंडी’ के साथ बिता। हर्ष के दरबारी कवि बाणभट्ट की रचना ‘हर्षचरित’ से यह सारी जानकारी मिलती है।
थानेश्वर राज्य में राज्यभिषेक ( 606 ई. – 647 ई. ) — बड़े भाई की मृत्यु के उपरांत 16 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री भंडी के परामर्श से हर्षवर्धन का राज्यभिषेक 606 ई. में थानेश्वर में किया गया। सम्राट हर्षवर्धन के राज्य की प्रथम राजधानी थानेश्वर सरस्वती नदी के किनारे स्थित थी।
कन्नौज की प्राप्ति — राज्यभिषेक के पश्चात हर्षवर्धन ने सबसे पहले अपने शत्रुओं से बदला लिया। उसकी बहन राज्यश्री कारागार से भाग विद्यांचल के जंगलों में चली गई थी। हर्षवर्धन ने दिवाकरमित्र नामक बौद्ध सन्यासी की सहायता से उसे खोज कर महल बुला लिया। बार-बार हमलों के चलते राजश्री के आग्रह पर हर्ष ने थानेश्वर को कन्नौज में मिलाकर अपनी राजधानी कन्नौज को घोषित कर दिया।
हर्षवर्धन की प्रमुख विजय गाथाएं —
गौड़ प्रदेश की विजय — गौड़ का शासक शशांक हर्ष का सबसे बड़ा शत्रु था। वह शैव मत को मानता था और बौद्ध मत का घोर विरोधी था। हर्ष ने भंडी को सेना के साथ गौड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजा परंतु वह पूर्ण रूप से सफल ना हो पाए। बाद में हर्ष ने कामरूप के राजा ‘भास्करवर्मन’ से संधि करके शशांक को बुरी तरह से पराजित किया।
पांचो प्रदेशों की विजय — ह्वेनसांग के अनुसार हर्षवर्धन ने अपने शासनकाल के शुरुआती छह वर्षों तक पांच प्रदेशों के शासकों से निरंतर युद्ध किए और लगातार विजय प्राप्त की। यह पांच राज्य पंजाब, कन्नौज, बिहार, बंगाल और उड़ीसा थे।
वल्लभी की विजय — हर्षवर्धन ने 630 ई. में विशाल सेना के साथ वल्लभी ( गुजरात ) पर आक्रमण कर दिया। वहां ध्रुवसेन द्वितीय का शासन था। इस युद्ध में ध्रुवसेन की पराजय हुई और उसे भड़ौच के राजा दद्दा द्वितीय के पास शरण लेनी पड़ी। बाद में दद्दा के कहने पर ध्रुवसेन का राज्य उसे लौटा दिया गया और ध्रुवसेन ने हर्षवर्धन की अधीनता को स्वीकार कर ली। हर्ष ने अपनी पुत्री का विवाह ध्रुवसेन से करके उसे अपना जमाता बना लिया।
कामरूप की विजय — हर्षवर्धन ने कामरूप ( असम ) के शासक भास्करवर्मन को पराजित करके उसे अपने राज्य के अधीन कर लिया था किंतु हर्ष ने शशांक को हराने के लिए उसे राज्य वापस कर दिया। भास्करवर्मन ने हर्ष की अधीनता पहले ही स्वीकार कर ली थी।
सिंध की विजय — प्रभाकरवर्धन ने सिंध के राजा को पराजित करके सिंध पर अधिकार कर लिया। परंतु उनकी मृत्यु के पश्चात सिंध ने पुन: स्वतंत्रता प्राप्त कर ली। हर्षवर्धन ने वापिस आक्रमण करके जीत हासिल की।
कश्मीर की विजय — हर्षवर्धन ने कश्मीर के राजा दुर्लभवर्धन पर हमला कर दिया और उसे हराकर बलपूर्वक उससे अधीनता स्वीकार करवाई तथा वहां से महात्मा बुध का पवित्र दांत ले जाकर कन्नौज के विहार में स्थापित करवाया। यह महात्मा बुध का पवित्र दांत था जिसमें सदैव रोशनी रहती थी।
नेपाल की विजय — बाणभट्ट के अनुसार हर्ष ने बर्फीले प्रदेश में आक्रमण कर विजय प्राप्त की। नेपाल के शासक यशोवर्मन ने अपने राज्य में ‘हर्षसंवत’ का प्रचलन आरंभ किया था जो यह प्रमाणित करता है कि वह भी हर्षवर्धन के अधीन था।
गंजम विजय — हर्ष की अंतिम विजय उड़ीसा की थी। शुरुआती कुछ आक्रमण सफल नहीं हो पाए परंतु 643 ई. में वह इस पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। इस समय पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु हो चुकी थी जो उसका समकालीन शासक था। बाद में हर्ष ने उड़ीसा के 80 नगरों को स्थानीय बौद्ध मंदिरों को दान में दे दिया।
हर्ष का साम्राज्य – हर्ष ने अपनी सेना के दम पर एक विशाल साम्राज्य की नींव रखी जो उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में विंध्याचल तक पूर्व में कामरूप से लेकर पश्चिम में अरब सागर तक फैला था।
विदेशों के साथ संबंध — हर्ष के विदेशों के साथ अच्छे संबंध थे। विदेशों से व्यापार होता था और तीर्थयात्री भारत घूमने आते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग भी हर्षवर्धन के समय ही भारत आया और आठ वर्ष हर्ष के दरबार में ही रहा। ह्वेनसांग को यात्रियों का राजकुमार कहा जाता है।
पुलकेशिन द्वितीय के साथ युद्ध — पुलकेशिन द्वितीय दक्षिण भारत का शक्तिशाली शासक था और हर्षवर्धन उत्तर भारत का शक्तिशाली शासक था। 633 ई. में लड़ा गया यह युद्ध नर्मदा नदी के किनारे पर हुआ। जिसमें हर्षवर्धन यह युद्ध हार गया।
हर्ष का शासन प्रबंध—
हर्ष ने अपने साम्राज्य में उच्च कोटि की शासन प्रणाली स्थापित कर रखी थी। जिसमें राजा ( हर्षवर्धन ) राज्य का सर्वोच्च अधिकारी था। इसके बाद अलग-अलग मंत्री पद योग्य व्यक्तियों को दिए गए थे। मंत्रियों में सैनिक गुण होना अनिवार्य था क्योंकि किसी भी मंत्री को सैन्य अभियान में भेजा जा सकता था। मंत्रियों का बंटवारा भी निम्न प्रकार से होता था:
पांचो प्रदेशों की विजय — ह्वेनसांग के अनुसार हर्षवर्धन ने अपने शासनकाल के शुरुआती छह वर्षों तक पांच प्रदेशों के शासकों से निरंतर युद्ध किए और लगातार विजय प्राप्त की। यह पांच राज्य पंजाब, कन्नौज, बिहार, बंगाल और उड़ीसा थे।
वल्लभी की विजय — हर्षवर्धन ने 630 ई. में विशाल सेना के साथ वल्लभी ( गुजरात ) पर आक्रमण कर दिया। वहां ध्रुवसेन द्वितीय का शासन था। इस युद्ध में ध्रुवसेन की पराजय हुई और उसे भड़ौच के राजा दद्दा द्वितीय के पास शरण लेनी पड़ी। बाद में दद्दा के कहने पर ध्रुवसेन का राज्य उसे लौटा दिया गया और ध्रुवसेन ने हर्षवर्धन की अधीनता को स्वीकार कर ली। हर्ष ने अपनी पुत्री का विवाह ध्रुवसेन से करके उसे अपना जमाता बना लिया।
कामरूप की विजय — हर्षवर्धन ने कामरूप ( असम ) के शासक भास्करवर्मन को पराजित करके उसे अपने राज्य के अधीन कर लिया था किंतु हर्ष ने शशांक को हराने के लिए उसे राज्य वापस कर दिया। भास्करवर्मन ने हर्ष की अधीनता पहले ही स्वीकार कर ली थी।
सिंध की विजय — प्रभाकरवर्धन ने सिंध के राजा को पराजित करके सिंध पर अधिकार कर लिया। परंतु उनकी मृत्यु के पश्चात सिंध ने पुन: स्वतंत्रता प्राप्त कर ली। हर्षवर्धन ने वापिस आक्रमण करके जीत हासिल की।
कश्मीर की विजय — हर्षवर्धन ने कश्मीर के राजा दुर्लभवर्धन पर हमला कर दिया और उसे हराकर बलपूर्वक उससे अधीनता स्वीकार करवाई तथा वहां से महात्मा बुध का पवित्र दांत ले जाकर कन्नौज के विहार में स्थापित करवाया। यह महात्मा बुध का पवित्र दांत था जिसमें सदैव रोशनी रहती थी।
नेपाल की विजय — बाणभट्ट के अनुसार हर्ष ने बर्फीले प्रदेश में आक्रमण कर विजय प्राप्त की। नेपाल के शासक यशोवर्मन ने अपने राज्य में ‘हर्षसंवत’ का प्रचलन आरंभ किया था जो यह प्रमाणित करता है कि वह भी हर्षवर्धन के अधीन था।
गंजम विजय — हर्ष की अंतिम विजय उड़ीसा की थी। शुरुआती कुछ आक्रमण सफल नहीं हो पाए परंतु 643 ई. में वह इस पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। इस समय पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु हो चुकी थी जो उसका समकालीन शासक था। बाद में हर्ष ने उड़ीसा के 80 नगरों को स्थानीय बौद्ध मंदिरों को दान में दे दिया।
हर्षवर्धन का साम्राज्य |
हर्ष का साम्राज्य – हर्ष ने अपनी सेना के दम पर एक विशाल साम्राज्य की नींव रखी जो उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में विंध्याचल तक पूर्व में कामरूप से लेकर पश्चिम में अरब सागर तक फैला था।
विदेशों के साथ संबंध — हर्ष के विदेशों के साथ अच्छे संबंध थे। विदेशों से व्यापार होता था और तीर्थयात्री भारत घूमने आते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग भी हर्षवर्धन के समय ही भारत आया और आठ वर्ष हर्ष के दरबार में ही रहा। ह्वेनसांग को यात्रियों का राजकुमार कहा जाता है।
पुलकेशिन द्वितीय के साथ युद्ध — पुलकेशिन द्वितीय दक्षिण भारत का शक्तिशाली शासक था और हर्षवर्धन उत्तर भारत का शक्तिशाली शासक था। 633 ई. में लड़ा गया यह युद्ध नर्मदा नदी के किनारे पर हुआ। जिसमें हर्षवर्धन यह युद्ध हार गया।
हर्ष का शासन प्रबंध—
हर्ष ने अपने साम्राज्य में उच्च कोटि की शासन प्रणाली स्थापित कर रखी थी। जिसमें राजा ( हर्षवर्धन ) राज्य का सर्वोच्च अधिकारी था। इसके बाद अलग-अलग मंत्री पद योग्य व्यक्तियों को दिए गए थे। मंत्रियों में सैनिक गुण होना अनिवार्य था क्योंकि किसी भी मंत्री को सैन्य अभियान में भेजा जा सकता था। मंत्रियों का बंटवारा भी निम्न प्रकार से होता था:
- प्रधानमंत्री ( राजा का प्रमुख सलाहकार )
- महासंधिविग्रहाधिकृत ( युद्ध व शांति मंत्री )
- महाबलाधिकृत ( सेनाध्यक्ष )
- महाप्रतिहार ( महल का सुरक्षा मंत्री )
- अष्टपटालिक ( लेखा अधिकारी )
प्रांतीय शासन – हर्ष ने साम्राज्य को चलाने के लिए प्रांतों में बांट रखा था। प्रांतों को दी गई शक्तियां सामंतों और महा सामंतों में विभाजित थी जिन्होंने हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली थी। प्रांतीय शासन चलाने वाले लोग अप्रत्यक्ष रूप से अपने अपने प्रांत के मुखिया थे। जिन क्षेत्रों पर खुद हर्षवर्धन राज करता था वह क्षेत्र भुक्ति कहलाते थे। उनके मुखिया को उपारिक किया कुमारमातय कहा जाता था।
स्थानीय शासन – भुक्ति को विश्व में बांटा गया था जिसका नेतृत्व वेश्या पति या आयुक्त करता था। उनकी नियुक्ति स्वयं शासक करता था। विषक आगे पथिक में विभाजित थे जिनकी स्थिति आज के तहसील स्तर के अधिकारी की मानी जाती थी। प्रशासन में सबसे छोटी इकाई ग्राम थी। जिसका प्रधान महतर कहलाता था। कई स्थानों पर उसे ग्रामिक भी कहा जाता था।
राजस्व व्यवस्था —
आय — आय का मुख्य साधन भू-राजस्व था। यह कुल उपज का 1/6 भाग लिया जाता था। इसे ‘भाग’ या ‘उद्रंग’ कहा जाता था। प्रजा स्वेच्छा से राजा को जो उपहार देती थी। वह ‘बलि’ कहलाता था। इसके अतिरिक्त चुंगी कर, बिक्री कर, वन कर आदि थे।
व्यय — हर्षवर्धन अपनी आय को पांच तरह से बांटता था:दान देना – हर्षवर्धन एक दानवीर सम्राट था। उसने नालंदा विश्वविद्यालय को 200 गांव दान कर दिए।
प्रजा हितकारी कार्य – हर्षवर्धन आय से चिकित्सालय, विश्रामगृह, सड़के, पुल-निर्माण, शिक्षा का प्रबंध और पानी के प्रबंध का खर्च उठाया था।
वेतन – हर्षवर्धन के शासन में सेनापति से लेकर साधारण सिपाही को अपने गुजारे के लिए पर्याप्त वेतन दिया जाता था।
सेना पर खर्च – मैं अपनी सेना के लिए अस्त्र-शस्त्र, कवच, कुंडल, घोड़े तथा हाथियों का प्रबंध अपनी आय से ही करता था।
राज परिवार पर खर्च – राज परिवार की जरूरत की वस्तुएं तथा महल की मरम्मत का खर्च भी यहीं से जाता था
सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था —
वर्ण व्यवस्था — उस समय का समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में बटा हुआ था। ब्राह्मण समाज को शिक्षा देते थे तथा पवित्र कार्य पूरे करवाते थे। क्षत्रिय रक्षा का कार्य करते थे। वैश्य व्यापारिक कार्यों में लगे रहते थे और समाज की आवश्यकता पूरी करते थे। शूद्रों का कार्य सेवा करना था।
विवाह — उस समय समाज में अंतरजातीय विवाह मान्य थे। अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह को भी धीरे-धीरे स्वीकृति मिल जाती थी। समाज में बहुविवाह की प्रथा भी प्रचलित थी।
उच्च नैतिक जीवन — उस समय भारतीय पाप पुण्य का सदैव ध्यान रखते थे। यहां ईमानदारी एवं कर्तव्य निष्ठा सदैव बनी रहती थी और अतिथि को भगवान का दर्जा दिया जाता था।
आवास — नगर साधारण एवं निश्चित योजना के अनुसार बनते थे जिसके चारों ओर सुरक्षा के लिए परकोटे बनाए जाते थे। नगरों में कई मंजिलों के भवन होते थे और घरों का निर्माण पत्थर व पकाई गई ईंटो से किया जाता था।
खानपान — उस समय के लोग सादा भोजन करते थे। लोग गेहूं, चावल, घी, दूध, दही, गुड़, शक्कर, सरसों का तेल आदि उनके भोजन के मुख्य अंग थे। प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं होता था। कुछ लोग मांसाहारी भी थे। दालें, सब्जियां और फलों का प्रयोग भी किया जाता था।
आर्थिक व्यवस्था — उस समय के लोगों की आजीविका का मुख्य आधार कृषि था। हर्षचरित के अनुसार चावल, गेहूं, ईख आदि के साथ सेब और अंगूर भी उगाए जाते थे। उस समय कुछ शहर अपने व्यापार के लिए काफी प्रसिद्ध और समृद्ध हो गए थे जैसे थानेश्वर उज्जैनी और कन्नौज। उस समय कपड़ा उद्योग, चमड़ा उद्योग, बर्तन उद्योग एवं औजार उद्योग व्यापार के लिए प्रमुख उद्योग थे।
हर्षवर्धन का चरित्र —
हर्षवर्धन के चरित्र, सफलताओं व उपलब्धियों का वर्णन बाणभट्ट द्वारा रचित ‘हर्षचरित’ में मिलता है।
कुशल शासन प्रबंधक एवं महान सेनापति – उसने अपने शासन को प्रांत जिलों में गांव में बांट रखा था। वह प्रजा का हाल जानने के लिए राज्य का भ्रमण भी करता था। अपनी सेना और रणनीति से उसने उत्तर भारत के बहुत सारे राजाओं को हराया।
प्रजा प्रेमी – वह अपनी जनता से बहुत प्रेम करता था। वह अपने राजकोष में से एक निश्चित मात्रा में धन, प्रजा कल्याण के लिए, चिकित्सालय, विद्यालयों, भवनों, सड़कों इत्यादि पर खर्च किया करता था।
परिवार प्रेमी – वह अपने परिवार से बहुत प्रेम करता था। जब उसके भाई राज्यवर्धन की धोखे से हत्या की गई तो उसने उसका बदला लिया और साथ ही अपनी बहन को ढूंढ निकाला।
महान दानी – हर्षवर्धन एक बहुत बड़ा दानी था। वह प्रत्येक पांच वर्ष के बाद प्रयाग सम्मेलन में भरपूर दान किया करता था।
धार्मिक सहनशील – हर्ष आरंभ में शैव मत का अनुयाई था लेकिन बाद में वह बौद्ध धर्म को मानने लगा। प्रयाग सभा में उसने पहले दिन बुध की, दूसरे दिन सूर्य की और तीसरे दिन शिव की उपासना की। उसके राज्य में सभी धर्मों के लोग रहते थे।
बौद्ध धर्म का प्रचारक – हर्षवर्धन ने अपने दूतों को धर्म प्रचार के लिए विदेशों तक भेज दिया। उसने नालंदा विश्वविद्यालय को 200 गांव दान दे दिए क्योंकि उसमें बौद्ध धर्म की शिक्षा दी जाती थी।
विद्वानों का संरक्षण – हर्षवर्धन ने अपने दरबार में अनेक साहित्यिक और बौद्ध विद्वानों को स्थान दे रखा था। उसके दरबार में बाणभट, दिवाकर, मयूर, जयसेन, एवं भास जैसे विद्वान रहते थे।
नाटककार सम्राट, कला एवं साहित्य को संरक्षण – हर्षवर्धन स्वयं एक नाटककार एवं विद्वान शासक था। उसने तीन नाटकों ‘रत्नावली’, ‘नागानंद’ व ‘प्रियदर्शिका’ की रचना की। उसने बाणभट्ट जैसे महान साहित्यकार को संरक्षण दिया जिसने ‘हर्षचरित्र’ एवं ‘कादम्बरी’ जैसे ग्रंथों की रचना की। उसके दरबार में जयसेन ने योग, शास्त्र, वेद, ज्योतिष, भूगोल, गणित व चिकित्सा विषयों पर लिखा।
शिक्षा का संरक्षक – हर्ष के समय में नालंदा विश्वविद्यालय सर्वाधिक प्रसिद्ध था। हर्ष ने 200 कर मुक्त गांव नालंदा विश्वविद्यालय को खर्च चलाने के लिए दान किए थे।
ह्वेनसांग का हर्ष के बारे में विवरण —
ह्वेनसांग एक चीनी यात्री था। उसे ‘यात्रियों का राजकुमार’ कहा जाता है। वह 629 ई. में हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया और लगभग आठ वर्षों तक हर्ष के दरबार में रहा। वह बौद्ध धर्म के तीर्थ स्थानों व बौद्ध धर्म के बारे में जानने के लिए भारत आया था। उसने 2 साल तक नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा भी ग्रहण की। दक्षिण भारत में घूमने के बाद वह 644 ई. में चीन के लिए प्रस्थान कर गया। उसने अपना भारत यात्रा का वृतांत लिखा जिसका शीर्षक था सी-यू-की।
प्रजा प्रेमी – वह अपनी जनता से बहुत प्रेम करता था। वह अपने राजकोष में से एक निश्चित मात्रा में धन, प्रजा कल्याण के लिए, चिकित्सालय, विद्यालयों, भवनों, सड़कों इत्यादि पर खर्च किया करता था।
परिवार प्रेमी – वह अपने परिवार से बहुत प्रेम करता था। जब उसके भाई राज्यवर्धन की धोखे से हत्या की गई तो उसने उसका बदला लिया और साथ ही अपनी बहन को ढूंढ निकाला।
महान दानी – हर्षवर्धन एक बहुत बड़ा दानी था। वह प्रत्येक पांच वर्ष के बाद प्रयाग सम्मेलन में भरपूर दान किया करता था।
धार्मिक सहनशील – हर्ष आरंभ में शैव मत का अनुयाई था लेकिन बाद में वह बौद्ध धर्म को मानने लगा। प्रयाग सभा में उसने पहले दिन बुध की, दूसरे दिन सूर्य की और तीसरे दिन शिव की उपासना की। उसके राज्य में सभी धर्मों के लोग रहते थे।
बौद्ध धर्म का प्रचारक – हर्षवर्धन ने अपने दूतों को धर्म प्रचार के लिए विदेशों तक भेज दिया। उसने नालंदा विश्वविद्यालय को 200 गांव दान दे दिए क्योंकि उसमें बौद्ध धर्म की शिक्षा दी जाती थी।
विद्वानों का संरक्षण – हर्षवर्धन ने अपने दरबार में अनेक साहित्यिक और बौद्ध विद्वानों को स्थान दे रखा था। उसके दरबार में बाणभट, दिवाकर, मयूर, जयसेन, एवं भास जैसे विद्वान रहते थे।
नाटककार सम्राट, कला एवं साहित्य को संरक्षण – हर्षवर्धन स्वयं एक नाटककार एवं विद्वान शासक था। उसने तीन नाटकों ‘रत्नावली’, ‘नागानंद’ व ‘प्रियदर्शिका’ की रचना की। उसने बाणभट्ट जैसे महान साहित्यकार को संरक्षण दिया जिसने ‘हर्षचरित्र’ एवं ‘कादम्बरी’ जैसे ग्रंथों की रचना की। उसके दरबार में जयसेन ने योग, शास्त्र, वेद, ज्योतिष, भूगोल, गणित व चिकित्सा विषयों पर लिखा।
शिक्षा का संरक्षक – हर्ष के समय में नालंदा विश्वविद्यालय सर्वाधिक प्रसिद्ध था। हर्ष ने 200 कर मुक्त गांव नालंदा विश्वविद्यालय को खर्च चलाने के लिए दान किए थे।
ह्वेनसांग का हर्ष के बारे में विवरण —
ह्वेनसांग एक चीनी यात्री था। उसे ‘यात्रियों का राजकुमार’ कहा जाता है। वह 629 ई. में हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया और लगभग आठ वर्षों तक हर्ष के दरबार में रहा। वह बौद्ध धर्म के तीर्थ स्थानों व बौद्ध धर्म के बारे में जानने के लिए भारत आया था। उसने 2 साल तक नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा भी ग्रहण की। दक्षिण भारत में घूमने के बाद वह 644 ई. में चीन के लिए प्रस्थान कर गया। उसने अपना भारत यात्रा का वृतांत लिखा जिसका शीर्षक था सी-यू-की।
ह्वेनसांग का मार्ग |
Question Answer
सही उत्तर छांटें :
1. गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात किस वंश की स्थापना हुई?
(क) चालुक्य
(ख) मौर्य
(ग) पुष्यभूति
(घ) राजपूत
उत्तर - (ग) पुष्यभूति
2. राजा हर्षवर्धन के दरबारी कवि कौन थे?
(क) तुलसीदास
(ख) बाणभट्ट
(ग) सूरदास
(घ) रसखान
उत्तर - (ख) बाणभट्ट
3. संस्कृत नाटक ‘नागानंद’ की रचना किस शासक द्वारा की गई थी?
(क) प्रभाकरवर्धन
(ख) हर्षवर्धन
(ग) राज्यवर्धन
(घ) नस्वर्धन
उत्तर - (ख) हर्षवर्धन
4. नर्मदा नदी पर सम्राट हर्ष के दक्षिणवर्ती अग्रगमन को रोका-
(क) पुलकेशिन- । ने
(ख) पुलकेशिन- II ने
(ग) विक्रमादित्य- I ने
(घ) विक्रमादित्य-II ने
उत्तर - (क) पुलकेशिन- II ने
5. बंगाल का कौन-सा शासक हर्ष का समकालीन था ?
(क) शशांक
(ख) ध्रुव सेन
(ग) पुलकेशिन 1
(घ) भास्करवर्मा
उत्तर - (क) शशांक
रिक्त स्थान की पूर्ति करें:
1. पुष्यभूति ने थानेसर में ________नामक वंश की स्थापना की।
2. प्रभाकरवर्धन ने अपनी पुत्री का विवाह कन्नौज के शक्तिशाली राजा ________ से किया।
3. हर्ष ने _______ नामक बौद्ध संन्यासी की सहायता से अपनी बहन को खोज लिया।
4. हर्षवर्धन का जन्म ______ ई. में हुआ।
5. बाणभट्ट ने _________ एवं ______ जैसे ग्रंथों की रचना की।
उत्तर -
सही उत्तर छांटें :
1. गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात किस वंश की स्थापना हुई?
(क) चालुक्य
(ख) मौर्य
(ग) पुष्यभूति
(घ) राजपूत
उत्तर - (ग) पुष्यभूति
2. राजा हर्षवर्धन के दरबारी कवि कौन थे?
(क) तुलसीदास
(ख) बाणभट्ट
(ग) सूरदास
(घ) रसखान
उत्तर - (ख) बाणभट्ट
3. संस्कृत नाटक ‘नागानंद’ की रचना किस शासक द्वारा की गई थी?
(क) प्रभाकरवर्धन
(ख) हर्षवर्धन
(ग) राज्यवर्धन
(घ) नस्वर्धन
उत्तर - (ख) हर्षवर्धन
4. नर्मदा नदी पर सम्राट हर्ष के दक्षिणवर्ती अग्रगमन को रोका-
(क) पुलकेशिन- । ने
(ख) पुलकेशिन- II ने
(ग) विक्रमादित्य- I ने
(घ) विक्रमादित्य-II ने
उत्तर - (क) पुलकेशिन- II ने
5. बंगाल का कौन-सा शासक हर्ष का समकालीन था ?
(क) शशांक
(ख) ध्रुव सेन
(ग) पुलकेशिन 1
(घ) भास्करवर्मा
उत्तर - (क) शशांक
रिक्त स्थान की पूर्ति करें:
1. पुष्यभूति ने थानेसर में ________नामक वंश की स्थापना की।
2. प्रभाकरवर्धन ने अपनी पुत्री का विवाह कन्नौज के शक्तिशाली राजा ________ से किया।
3. हर्ष ने _______ नामक बौद्ध संन्यासी की सहायता से अपनी बहन को खोज लिया।
4. हर्षवर्धन का जन्म ______ ई. में हुआ।
5. बाणभट्ट ने _________ एवं ______ जैसे ग्रंथों की रचना की।
उत्तर -
- पुष्यभूति
- गृहवर्मन मौखरी
- दिवाकरमित्र
- 590 ई.
- हर्षचरित, कादम्बरी
उचित मिलान करो:
1. कादंबरी (क) स्वेच्छा से दिया गया उपहार
2. नालंदा विश्वविद्यालय (ख) भूमि कर
3. भाग (ग) कुमारगुप्त
1. कादंबरी (क) स्वेच्छा से दिया गया उपहार
2. नालंदा विश्वविद्यालय (ख) भूमि कर
3. भाग (ग) कुमारगुप्त
4. बलि (घ) सेना का नेतृत्व करने वाला
5. कटुक (ड़) बाणभट्ट
उत्तर -
1. कादंबरी (ड़) बाणभट्ट
2. नालंदा विश्वविद्यालय (ग) कुमारगुप्त
3. भाग (ख) भूमि कर
4. बलि (क) स्वेच्छा से दिया गया उपहार
5. कटुक (घ) सेना का नेतृत्व करने वाला
निम्नलिखित कथनों में सही (✓) अथवा गलत (X) का निशान लगाओ
- प्रभाकरवर्धन राजा आदित्यवर्धन तथा रानी महासेन गुप्त देवी का पुत्र था। (✓)
- गौड़ अथवा कर्नाटक का राजा शशांक हर्ष का सबसे बड़ा शत्रु था। (X)
- महासंधि विग्रहाधिकृत हर्ष का युद्ध व शांति मंत्री था। (✓)
- नालंदा विश्वविद्यालय में 10000 विद्यार्थी तथा 5000 शिक्षक कार्यरत थे। (X)
- ह्वेनसांग ने नालंदा विश्वविद्यालय में 5 साल तक शिक्षा ग्रहण की। (X)
लघु प्रश्न :
प्रश्न 1. हर्षचरित क्या है और यह किसने लिखा?
उत्तर – हर्षचरित् एक ग्रंथ है जिसकी रचना बाणभट्ट ने की थी।
प्रश्न 2. हर्षवर्धन के शासन काल के बारे में जानकारी देने वाले स्रोत कौन से हैं?
उत्तर - हर्षवर्धन के शासनकाल की जानकारी हमें बाणभट्ट द्वारा रचित ‘हर्षचरित’ तथा ह्वेनसांग द्वारा लिखित यात्रा वृतांत ‘सी-यू-की’ से मिलती है।
प्रश्न 3. गौड़ राज्य का अधिकरण करने के लिए हर्षवर्धन की क्या मंशा थी?
उत्तर - गौड़ राज्य के शासक शशांक ने बाकी राजाओं के साथ मिलकर उसके बहनोई कन्नौज के शासक के गृहवर्मन मौखरी के साथ युद्ध करके उसकी हत्या कर दी और उसकी बहन राज्यश्री को बंदी बना लिया। इसके पश्चात राजा शशांक ने धोखे से उसके भाई राज्यवर्धन की भी हत्या कर दी थी। इन सब घटनाओं से हर्षवर्धन बहुत नाराज था और उसको अपना दुश्मन मानता था। इसके लिए उसने गौड़ राजा का अधिकरण करने के लिए भंडी को सेना के साथ गौड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजा परंतु भंडी और सेना उसको पूरी तरह से दमन नहीं कर सके। बाद में हर्षवर्धन ने कामरूप के राजा भास्करवर्मन से संधि कर ली तथा उन दोनों ने मिलकर शशांक को बुरी तरह पराजित किया और अपना प्रतिशोध पूरा किया।
प्रश्न 4. राज्याभिषेक के बाद राजा हर्षवर्धन ने सबसे पहले क्या कार्य किया? इस कार्य में उनकी सहायता किसने की?
उत्तर - राज्यभिषेक के पश्चात हर्षवर्धन ने सबसे पहले उसकी बहन राज्यश्री को ढूंढा जो कारागार से भाग विद्यांचल के जंगलों में चली गई थी। हर्षवर्धन ने दिवाकरमित्र नामक बौद्ध सन्यासी की सहायता से उसे खोज कर महल बुला लिया।
आइए विचार करें:
प्रश्न 1. हर्षवर्धन एक विशाल साम्राज्य बनाने में सफल रहा इस कथन को तर्क सहित सिद्ध करें।
उत्तर - हर्षवर्धन एक विशाल साम्राज्य बनाने में सफल रहा इस कथन को इस प्रकार सिद्ध किया जा सकता है कि हर्षवर्धन ने लगभग जितने युद्ध लड़े वह सभी जीते। उसने पूरा उत्तर भारत अपने कब्जे में ले लिया था। हर्षवर्धन ने शशांक को हराकर गौड़ प्रदेश को जीत लिया। इसी प्रकार ध्रुवसेन द्वितीय को हराकर वल्लभी पर विजय प्राप्त की। कामरूप के शासक भास्करवर्मन को पराजित करके हर्ष ने कामरूप पर भी अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। इसी तरह हर्ष ने सिंध, कश्मीर और नेपाल पर भी विजय प्राप्त की। हर्ष की अंतिम विजय गंजम (उड़ीसा) की थी।
प्रश्न 2. हर्षवर्धन साम्राज्य में आय और व्यय के स्त्रोत क्या थे?
उत्तर -
आय के स्त्रोत –
आय का मुख्य साधन भू-राजस्व था। यह कुल उपज का 1/6 भाग लिया जाता था। इसे ‘भाग’ या ‘उद्रंग’ कहा जाता था। प्रजा स्वेच्छा से राजा को जो उपहार देती थी। वह ‘बलि’ कहलाता था। इसके अतिरिक्त चुंगी कर, बिक्री कर, वन कर आदि थे।
व्यय के स्त्रोत –
आय का मुख्य साधन भू-राजस्व था। यह कुल उपज का 1/6 भाग लिया जाता था। इसे ‘भाग’ या ‘उद्रंग’ कहा जाता था। प्रजा स्वेच्छा से राजा को जो उपहार देती थी। वह ‘बलि’ कहलाता था। इसके अतिरिक्त चुंगी कर, बिक्री कर, वन कर आदि थे।
व्यय के स्त्रोत –
दान देना – हर्षवर्धन एक दानवीर सम्राट था। उसने नालंदा विश्वविद्यालय को 200 गांव दान कर दिए।
प्रजा हितकारी कार्य – हर्षवर्धन आय से चिकित्सालय, विश्रामगृह, सड़के, पुल-निर्माण, शिक्षा का प्रबंध और पानी के प्रबंध का खर्च उठाया था।
वेतन – हर्षवर्धन के शासन में सेनापति से लेकर साधारण सिपाही को अपने गुजारे के लिए पर्याप्त वेतन दिया जाता था।
सेना पर खर्च – मैं अपनी सेना के लिए अस्त्र-शस्त्र, कवच, कुंडल, घोड़े तथा हाथियों का प्रबंध अपनी आय से ही करता था।
राज परिवार पर खर्च – राज परिवार की जरूरत की वस्तुएं तथा महल की मरम्मत का खर्च भी यहीं से जाता था
प्रश्न 3. शिक्षा के क्षेत्र में हर्षवर्धन का क्या योगदान रहा? उदाहरण सहित पुष्टि करें।
उत्तर - शिक्षा को हर्ष का विशेष संरक्षण प्राप्त था। हर्ष के समय में नालंदा विश्वविद्यालय सर्वाधिक प्रसिद्ध था। हर्ष ने 200 करमुक्त गांव नालंदा विश्वविद्यालय को खर्च चलाने के लिए दान किए थे। वह अपने राज्य की आय का एक चौथाई भाग विद्वानों में पुरस्कार के रूप में बांटता था। हर्षवर्धन ने अपने दरबार में अनेक साहित्यिक और बौद्ध विद्वानों को स्थान दे रखा था। उसके दरबार में बाणभट, दिवाकर, मयूर, जयसेन, एवं भास जैसे विद्वान रहते थे।
प्रश्न 4. “राजा हर्षवर्धन विद्वानों, कला और साहित्य के महान संरक्षक थे”आप इस कथन से सहमत हैं ? तर्क सहित अपने उत्तर की पुष्टि करें।
उत्तर - हां, मैं इस बात से सहमत हूं कि राजा हर्षवर्धन विद्वानों, कला और साहित्य के महान संरक्षक थे। इस बात को इस प्रकार समझा जा सकता है कि राजा हर्षवर्धन ने अपने दरबार में अनेक साहित्यिक और बौद्ध विद्वानों को स्थान दे रखा था। वह स्वयं एक नाटककार एवं विद्वान शासक था। उसने तीन नाटकों ‘रत्नावली’, ‘नागानंद’ व ‘प्रियदर्शिका’ की रचना की।
प्रश्न 5. हर्षवर्धन की प्रमुख विजय कौन सी है? किन्ही दो का वर्णन करें।
उत्तर - हर्षवर्धन की प्रमुख विजय-
1. गौड़ प्रदेश की विजय
2. वल्लभी की विजय
3. पांच प्रदेशों की विजय
4. कामरूप की विजय
5. सिंध की विजय
6. कश्मीर की विजय
7. नेपाल की विजय
8. गंजम विजय
दो विजय का वर्णन-
1. गौड़ प्रदेश की विजय – गौड़ का शासक शशांक हर्ष का सबसे बड़ा शत्रु था। वह शैव मत को मानता था और बौद्ध मत का घोर विरोधी था। हर्ष ने भंडी को सेना के साथ गौड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजा परंतु वह पूर्ण रूप से सफल ना हो पाए। बाद में हर्ष ने कामरूप के राजा ‘भास्करवर्मन’ से संधि करके शशांक को बुरी तरह से पराजित किया।
2. वल्लभी की विजय – हर्षवर्धन के समय में वल्लभी एक शक्तिशाली एवं संपन्न राज्य था। 630 ई. में हर्षवर्धन ने एक विशाल सेना के साथ वल्लभी पर आक्रमण कर दिया। जिस युद्ध में वहां के शासक ध्रुवसेन द्वितीय की सेना पराजित हुई और वह वहां से युद्ध छोड़कर भाग गया। बाद में भड़ौच के राजा दद्दा द्वितीय ने उन दोनों की संधि करवा दी और ध्रुवसेन ने हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली।
प्रश्न 6. हर्ष के साम्राज्य में सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था में कौन सी थी? विश्लेषण करें।
उत्तर -
सामाजिक व्यवस्था –
प्रजा हितकारी कार्य – हर्षवर्धन आय से चिकित्सालय, विश्रामगृह, सड़के, पुल-निर्माण, शिक्षा का प्रबंध और पानी के प्रबंध का खर्च उठाया था।
वेतन – हर्षवर्धन के शासन में सेनापति से लेकर साधारण सिपाही को अपने गुजारे के लिए पर्याप्त वेतन दिया जाता था।
सेना पर खर्च – मैं अपनी सेना के लिए अस्त्र-शस्त्र, कवच, कुंडल, घोड़े तथा हाथियों का प्रबंध अपनी आय से ही करता था।
राज परिवार पर खर्च – राज परिवार की जरूरत की वस्तुएं तथा महल की मरम्मत का खर्च भी यहीं से जाता था
प्रश्न 3. शिक्षा के क्षेत्र में हर्षवर्धन का क्या योगदान रहा? उदाहरण सहित पुष्टि करें।
उत्तर - शिक्षा को हर्ष का विशेष संरक्षण प्राप्त था। हर्ष के समय में नालंदा विश्वविद्यालय सर्वाधिक प्रसिद्ध था। हर्ष ने 200 करमुक्त गांव नालंदा विश्वविद्यालय को खर्च चलाने के लिए दान किए थे। वह अपने राज्य की आय का एक चौथाई भाग विद्वानों में पुरस्कार के रूप में बांटता था। हर्षवर्धन ने अपने दरबार में अनेक साहित्यिक और बौद्ध विद्वानों को स्थान दे रखा था। उसके दरबार में बाणभट, दिवाकर, मयूर, जयसेन, एवं भास जैसे विद्वान रहते थे।
प्रश्न 4. “राजा हर्षवर्धन विद्वानों, कला और साहित्य के महान संरक्षक थे”आप इस कथन से सहमत हैं ? तर्क सहित अपने उत्तर की पुष्टि करें।
उत्तर - हां, मैं इस बात से सहमत हूं कि राजा हर्षवर्धन विद्वानों, कला और साहित्य के महान संरक्षक थे। इस बात को इस प्रकार समझा जा सकता है कि राजा हर्षवर्धन ने अपने दरबार में अनेक साहित्यिक और बौद्ध विद्वानों को स्थान दे रखा था। वह स्वयं एक नाटककार एवं विद्वान शासक था। उसने तीन नाटकों ‘रत्नावली’, ‘नागानंद’ व ‘प्रियदर्शिका’ की रचना की।
प्रश्न 5. हर्षवर्धन की प्रमुख विजय कौन सी है? किन्ही दो का वर्णन करें।
उत्तर - हर्षवर्धन की प्रमुख विजय-
1. गौड़ प्रदेश की विजय
2. वल्लभी की विजय
3. पांच प्रदेशों की विजय
4. कामरूप की विजय
5. सिंध की विजय
6. कश्मीर की विजय
7. नेपाल की विजय
8. गंजम विजय
दो विजय का वर्णन-
1. गौड़ प्रदेश की विजय – गौड़ का शासक शशांक हर्ष का सबसे बड़ा शत्रु था। वह शैव मत को मानता था और बौद्ध मत का घोर विरोधी था। हर्ष ने भंडी को सेना के साथ गौड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजा परंतु वह पूर्ण रूप से सफल ना हो पाए। बाद में हर्ष ने कामरूप के राजा ‘भास्करवर्मन’ से संधि करके शशांक को बुरी तरह से पराजित किया।
2. वल्लभी की विजय – हर्षवर्धन के समय में वल्लभी एक शक्तिशाली एवं संपन्न राज्य था। 630 ई. में हर्षवर्धन ने एक विशाल सेना के साथ वल्लभी पर आक्रमण कर दिया। जिस युद्ध में वहां के शासक ध्रुवसेन द्वितीय की सेना पराजित हुई और वह वहां से युद्ध छोड़कर भाग गया। बाद में भड़ौच के राजा दद्दा द्वितीय ने उन दोनों की संधि करवा दी और ध्रुवसेन ने हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली।
प्रश्न 6. हर्ष के साम्राज्य में सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था में कौन सी थी? विश्लेषण करें।
उत्तर -
सामाजिक व्यवस्था –
वर्ण व्यवस्था – उस समय का समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में बटा हुआ था। ब्राह्मण समाज को शिक्षा देते थे तथा पवित्र कार्य पूरे करवाते थे। क्षत्रिय रक्षा का कार्य करते थे। वैश्य व्यापारिक कार्यों में लगे रहते थे और समाज की आवश्यकता पूरी करते थे। शूद्रों का कार्य सेवा करना था।
विवाह – उस समय समाज में अंतरजातीय विवाह मान्य थे। समाज में बहुविवाह की प्रथा भी प्रचलित थी।
उच्च नैतिक जीवन – उस समय भारतीय पाप पुण्य का सदैव ध्यान रखते थे। यहां ईमानदारी एवं कर्तव्य निष्ठा सदैव बनी रहती थी और अतिथि को भगवान का दर्जा दिया जाता था।
आवास – नगर साधारण एवं निश्चित योजना के अनुसार बनते थे जिसके चारों ओर सुरक्षा के लिए परकोटे बनाए जाते थे। नगरों में कई मंजिलों के भवन होते थे और घरों का निर्माण पत्थर व पकाई गई ईंटो से किया जाता था।
खानपान – उस समय के लोग गेहूं, चावल, घी, दूध, दही, गुड़, शक्कर, सरसों का तेल आदि करते भोजन थे।
आर्थिक व्यवस्था – उस समय के लोगों की आजीविका का मुख्य आधार कृषि था। हर्षचरित के अनुसार चावल, गेहूं, ईख आदि के साथ सेब और अंगूर भी उगाए जाते थे। उस समय कुछ शहर अपने व्यापार के लिए काफी प्रसिद्ध और समृद्ध हो गए थे जैसे:- थानेसर, उज्जैनी और कन्नौज। उस समय कपड़ा उद्योग, चमड़ा उद्योग, बर्तन उद्योग एवं औजार उद्योग व्यापार के लिए प्रमुख उद्योग थे।
विवाह – उस समय समाज में अंतरजातीय विवाह मान्य थे। समाज में बहुविवाह की प्रथा भी प्रचलित थी।
उच्च नैतिक जीवन – उस समय भारतीय पाप पुण्य का सदैव ध्यान रखते थे। यहां ईमानदारी एवं कर्तव्य निष्ठा सदैव बनी रहती थी और अतिथि को भगवान का दर्जा दिया जाता था।
आवास – नगर साधारण एवं निश्चित योजना के अनुसार बनते थे जिसके चारों ओर सुरक्षा के लिए परकोटे बनाए जाते थे। नगरों में कई मंजिलों के भवन होते थे और घरों का निर्माण पत्थर व पकाई गई ईंटो से किया जाता था।
खानपान – उस समय के लोग गेहूं, चावल, घी, दूध, दही, गुड़, शक्कर, सरसों का तेल आदि करते भोजन थे।
आर्थिक व्यवस्था – उस समय के लोगों की आजीविका का मुख्य आधार कृषि था। हर्षचरित के अनुसार चावल, गेहूं, ईख आदि के साथ सेब और अंगूर भी उगाए जाते थे। उस समय कुछ शहर अपने व्यापार के लिए काफी प्रसिद्ध और समृद्ध हो गए थे जैसे:- थानेसर, उज्जैनी और कन्नौज। उस समय कपड़ा उद्योग, चमड़ा उद्योग, बर्तन उद्योग एवं औजार उद्योग व्यापार के लिए प्रमुख उद्योग थे।
Important Question Answer
प्रश्न 1. हर्षचरित क्या है और यह किसने लिखा?
उत्तर – हर्षचरित् एक ग्रंथ है जिसकी रचना बाणभट्ट ने की थी।
प्रश्न 2. राज्याभिषेक के बाद राजा हर्षवर्धन ने सबसे पहले क्या कार्य किया? इस कार्य में उनकी सहायता किसने की?
उत्तर - राज्यभिषेक के पश्चात हर्षवर्धन ने सबसे पहले उसकी बहन राज्यश्री को ढूंढा जो कारागार से भाग विद्यांचल के जंगलों में चली गई थी। हर्षवर्धन ने दिवाकरमित्र नामक बौद्ध सन्यासी की सहायता से उसे खोज कर महल बुला लिया।
प्रश्न 1. हर्षचरित क्या है और यह किसने लिखा?
उत्तर – हर्षचरित् एक ग्रंथ है जिसकी रचना बाणभट्ट ने की थी।
प्रश्न 2. राज्याभिषेक के बाद राजा हर्षवर्धन ने सबसे पहले क्या कार्य किया? इस कार्य में उनकी सहायता किसने की?
उत्तर - राज्यभिषेक के पश्चात हर्षवर्धन ने सबसे पहले उसकी बहन राज्यश्री को ढूंढा जो कारागार से भाग विद्यांचल के जंगलों में चली गई थी। हर्षवर्धन ने दिवाकरमित्र नामक बौद्ध सन्यासी की सहायता से उसे खोज कर महल बुला लिया।
प्रश्न 3. गंजम विजय का वर्णन करें।
उत्तर - हर्ष की अंतिम विजय उड़ीसा की थी। शुरुआती कुछ आक्रमण सफल नहीं हो पाए परंतु 643 ई. में वह इस पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। इस समय पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु हो चुकी थी जो उसका समकालीन शासक था। बाद में हर्ष ने उड़ीसा के 80 नगरों को स्थानीय बौद्ध मंदिरों को दान में दे दिया।
प्रश्न 4. हर्षवर्धन का साम्राज्य का विस्तार कहां तक था?
उत्तर - हर्षवर्धन ने अपनी सेना के दम पर एक विशाल साम्राज्य की नींव रखी जो उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में विंध्याचल तक, पूर्व में कामरूप से लेकर पश्चिम में अरब सागर तक फैला था।
प्रश्न 5. हर्षवर्धन के समय लोगो का भोजन कैसा था?
उत्तर - उस समय के लोग सादा भोजन करते थे। लोग गेहूं, चावल, घी, दूध, दही, गुड़, शक्कर, सरसों का तेल आदि उनके भोजन के मुख्य अंग थे। प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं होता था। कुछ लोग मांसाहारी भी थे। दालें, सब्जियां और फलों का प्रयोग भी किया जाता था।
प्रश्न 6. हर्षवर्धन के चरित्र की क्या विशेषताएँ थी?
उत्तर - कुशल शासन प्रबंधक एवं महान सेनापति – उसने अपने शासन को प्रांत जिलों में गांव में बांट रखा था। वह प्रजा का हाल जानने के लिए राज्य का भ्रमण भी करता था। अपनी सेना और रणनीति से उसने उत्तर भारत के बहुत सारे राजाओं को हराया।
प्रजा प्रेमी – वह अपनी जनता से बहुत प्रेम करता था। वह अपने राजकोष में से एक निश्चित मात्रा में धन, प्रजा कल्याण के लिए, चिकित्सालय, विद्यालयों, भवनों, सड़कों इत्यादि पर खर्च किया करता था।
परिवार प्रेमी – वह अपने परिवार से बहुत प्रेम करता था। जब उसके भाई राज्यवर्धन की धोखे से हत्या की गई तो उसने उसका बदला लिया और साथ ही अपनी बहन को ढूंढ निकाला।
महान दानी – हर्षवर्धन एक बहुत बड़ा दानी था। वह प्रत्येक पांच वर्ष के बाद प्रयाग सम्मेलन में भरपूर दान किया करता था।
धार्मिक सहनशील – हर्ष आरंभ में शैव मत का अनुयाई था लेकिन बाद में वह बौद्ध धर्म को मानने लगा। प्रयाग सभा में उसने पहले दिन बुध की, दूसरे दिन सूर्य की और तीसरे दिन शिव की उपासना की। उसके राज्य में सभी धर्मों के लोग रहते थे।
बौद्ध धर्म का प्रचारक – हर्षवर्धन ने अपने दूतों को धर्म प्रचार के लिए विदेशों तक भेज दिया। उसने नालंदा विश्वविद्यालय को 200 गांव दान दे दिए क्योंकि उसमें बौद्ध धर्म की शिक्षा दी जाती थी।
विद्वानों का संरक्षण – हर्षवर्धन ने अपने दरबार में अनेक साहित्यिक और बौद्ध विद्वानों को स्थान दे रखा था। उसके दरबार में बाणभट, दिवाकर, मयूर, जयसेन, एवं भास जैसे विद्वान रहते थे।
नाटककार सम्राट, कला एवं साहित्य को संरक्षण – हर्षवर्धन स्वयं एक नाटककार एवं विद्वान शासक था। उसने तीन नाटकों ‘रत्नावली’, ‘नागानंद’ व ‘प्रियदर्शिका’ की रचना की। उसने बाणभट्ट जैसे महान साहित्यकार को संरक्षण दिया जिसने ‘हर्षचरित्र’ एवं ‘कादम्बरी’ जैसे ग्रंथों की रचना की। उसके दरबार में जयसेन ने योग, शास्त्र, वेद, ज्योतिष, भूगोल, गणित व चिकित्सा विषयों पर लिखा।
शिक्षा का संरक्षक – हर्ष के समय में नालंदा विश्वविद्यालय सर्वाधिक प्रसिद्ध था। हर्ष ने 200 कर मुक्त गांव नालंदा विश्वविद्यालय को खर्च चलाने के लिए दान किए थे।
उत्तर - हर्ष की अंतिम विजय उड़ीसा की थी। शुरुआती कुछ आक्रमण सफल नहीं हो पाए परंतु 643 ई. में वह इस पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। इस समय पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु हो चुकी थी जो उसका समकालीन शासक था। बाद में हर्ष ने उड़ीसा के 80 नगरों को स्थानीय बौद्ध मंदिरों को दान में दे दिया।
प्रश्न 4. हर्षवर्धन का साम्राज्य का विस्तार कहां तक था?
उत्तर - हर्षवर्धन ने अपनी सेना के दम पर एक विशाल साम्राज्य की नींव रखी जो उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में विंध्याचल तक, पूर्व में कामरूप से लेकर पश्चिम में अरब सागर तक फैला था।
प्रश्न 5. हर्षवर्धन के समय लोगो का भोजन कैसा था?
उत्तर - उस समय के लोग सादा भोजन करते थे। लोग गेहूं, चावल, घी, दूध, दही, गुड़, शक्कर, सरसों का तेल आदि उनके भोजन के मुख्य अंग थे। प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं होता था। कुछ लोग मांसाहारी भी थे। दालें, सब्जियां और फलों का प्रयोग भी किया जाता था।
प्रश्न 6. हर्षवर्धन के चरित्र की क्या विशेषताएँ थी?
उत्तर - कुशल शासन प्रबंधक एवं महान सेनापति – उसने अपने शासन को प्रांत जिलों में गांव में बांट रखा था। वह प्रजा का हाल जानने के लिए राज्य का भ्रमण भी करता था। अपनी सेना और रणनीति से उसने उत्तर भारत के बहुत सारे राजाओं को हराया।
प्रजा प्रेमी – वह अपनी जनता से बहुत प्रेम करता था। वह अपने राजकोष में से एक निश्चित मात्रा में धन, प्रजा कल्याण के लिए, चिकित्सालय, विद्यालयों, भवनों, सड़कों इत्यादि पर खर्च किया करता था।
परिवार प्रेमी – वह अपने परिवार से बहुत प्रेम करता था। जब उसके भाई राज्यवर्धन की धोखे से हत्या की गई तो उसने उसका बदला लिया और साथ ही अपनी बहन को ढूंढ निकाला।
महान दानी – हर्षवर्धन एक बहुत बड़ा दानी था। वह प्रत्येक पांच वर्ष के बाद प्रयाग सम्मेलन में भरपूर दान किया करता था।
धार्मिक सहनशील – हर्ष आरंभ में शैव मत का अनुयाई था लेकिन बाद में वह बौद्ध धर्म को मानने लगा। प्रयाग सभा में उसने पहले दिन बुध की, दूसरे दिन सूर्य की और तीसरे दिन शिव की उपासना की। उसके राज्य में सभी धर्मों के लोग रहते थे।
बौद्ध धर्म का प्रचारक – हर्षवर्धन ने अपने दूतों को धर्म प्रचार के लिए विदेशों तक भेज दिया। उसने नालंदा विश्वविद्यालय को 200 गांव दान दे दिए क्योंकि उसमें बौद्ध धर्म की शिक्षा दी जाती थी।
विद्वानों का संरक्षण – हर्षवर्धन ने अपने दरबार में अनेक साहित्यिक और बौद्ध विद्वानों को स्थान दे रखा था। उसके दरबार में बाणभट, दिवाकर, मयूर, जयसेन, एवं भास जैसे विद्वान रहते थे।
नाटककार सम्राट, कला एवं साहित्य को संरक्षण – हर्षवर्धन स्वयं एक नाटककार एवं विद्वान शासक था। उसने तीन नाटकों ‘रत्नावली’, ‘नागानंद’ व ‘प्रियदर्शिका’ की रचना की। उसने बाणभट्ट जैसे महान साहित्यकार को संरक्षण दिया जिसने ‘हर्षचरित्र’ एवं ‘कादम्बरी’ जैसे ग्रंथों की रचना की। उसके दरबार में जयसेन ने योग, शास्त्र, वेद, ज्योतिष, भूगोल, गणित व चिकित्सा विषयों पर लिखा।
शिक्षा का संरक्षक – हर्ष के समय में नालंदा विश्वविद्यालय सर्वाधिक प्रसिद्ध था। हर्ष ने 200 कर मुक्त गांव नालंदा विश्वविद्यालय को खर्च चलाने के लिए दान किए थे।
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