कक्षा 06 इतिहास पाठ 1 सरस्वती-सिंधु सभ्यता Notes & Important Question Answer
Chapter Notes
गार्डन चाइल्ड के अनुसार यह सभ्यता 4000 वर्ष पुरानी मानी गई है। जबकि मार्टिमर व्हीलर ने इसका अनुमान 2000 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व के बीच माना है। परंतु नवीन खोजों के अनुसार यह सभ्यता 8000 साल पुरानी है।
सरस्वती नदी आदिबद्री से निकलकर हरियाणा के यमुनानगर, अंबाला, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद, हिसार, फतेहाबाद, सिरसा से बहती हुई राजस्थान व गुजरात होती हुई अरब सागर में गिरती थी।
सिंधु नदी का अधिकतर प्रवाह पाकिस्तान में है। मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ों, बालाकोट जैसे प्रमुख स्थल इसी नदी के किनारे पर हैं।
सरस्वती सिंधु एवं उनकी सहायक नदियों के किनारे मिले अनेक नगर अवशेषों के आधार पर ही इस सभ्यता को सरस्वती सिंधु सभ्यता कहा जाता है।
पहली बार हड़प्पा तब देखने को मिला। जब वहां रेल लाइन बिछाने के लिए रोडे चाहिए थे तो मजदूर नजदीक एक टीले से ईंटों के रोड़े उठा लाए और तब पहली बार यह स्थान अंग्रेजी अधिकारियों की नजर में आया।
1921 ईस्वी में दयाराम साहनी के नेतृत्व में रावी नदी के किनारे हड़प्पा की खुदाई करवाई गई तब एक विशाल नगर के अवशेष निकले। 1922 में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में सिंधु नदी के किनारे मोहनजोदड़ो से भी इसी प्रकार के अवशेष प्राप्त किए गए।
सरस्वती सिंधु सभ्यता की नगर योजना
सरस्वती सिंधु सभ्यता के नगरों के अवशेष हमें दो भागों में मिले हैं। पश्चिमी भाग छोटा था परंतु ऊंचाई पर बना था। इसे दूर्ग क्षेत्र ( नगरदुर्ग ) कहा गया है। पूर्वी भाग बड़ा था जिसे निचला नगर कहां गया है। अधिकतर पुरास्थलों के दोनों हिस्सों को चारदीवारी से घेरा गया था जिसे पक्की ईंटों से बनाया गया था।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार पक्की ईंटों का बना हुआ था। इसमें पानी का रिसाव रोकने के लिए प्लास्टर के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी। इस सरोवर में दो तरफ से उतरने के लिए सीढ़ियां बनी है, चारों ओर कमरे बनाए गए हैं, कुएं से पानी निकालकर इसे भरा जाता था। इसे खाली करने के लिए नाली बनी है।
सरस्वती सिंधु सभ्यता की सड़कें और नालियां
इस सभ्यता की सड़कें 13 फुट से 33 फुट तक चौड़ी होती थी। व गलियों की चौड़ाई 9 से 12 फुट होती थी। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
सड़कों के दोनों ओर नालियां बनी थी। घरों में प्रयोग होने के बाद पानी इन नालियों में आकर गिरता था। यह नालियां पक्की ईंटों से बनी हुई थी और ढकी हुई थी। पानी इन नालियों से बहता हुआ मुख्य नाले में जाकर गिरता था। जो नगर से बाहर पानी को ले जाता था।
सरस्वती सिंधु सभ्यता में भवन निर्माण योजना
इस सभ्यता में घरों का निर्माण एक निश्चित योजना से किया जाता था। आमतौर पर घर दो मंजिल के होते थे। घर में आंगन होते थे तथा रसोईघर, स्नानागार व शौचालय की सुविधाएं होती थी। दरवाजे मुख्य सड़कों की ओर न खुलकर गली में खुलते थे।
सरस्वती सिंधु सभ्यता में जनजीवन
इस सभ्यता के लोग नगरों के अतिरिक्त गांव में भी रहते थे। गांव में रहने वाले लोग कृषि करते थे। ये लोग गेहूं, जौ, दालें, मटर, धान, तिल और सरसों उगाते थे। कृषि बैलों और ऊंटों की सहायता से हल से की जाती थी। नदी व तालाबों से खेतों की सिंचाई करते थे।
यहां के लोग ऊंट, बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी व हाथी आदि जानवर पालते थे। बत्तख, खरगोश, हिरण, मुर्गा व तोता आदि जानवर भी पालते थे। यह सभी जानवर उनके कृषि कार्य, यातायात व भोजन में सहायक थे।
सरस्वती सिंधु सभ्यता में माप तोल
सरस्वती सिंधु सभ्यता में कई स्थानों पर बड़ी और भारी वस्तुओं को तोलने के लिए बांट भी मिले हैं। इसके अलावा पत्थर, शंख, तांबे, कांसे, सोने और चांदी से बनी बहुत सारी वस्तुएं भी प्राप्त की गई हैं।
सरस्वती सिंधु सभ्यता में हार श्रृंगार
इस सभ्यता के लोग बहुत ही सुंदर आकार के सोने-चांदी और पत्थरों के गहने बनाते थे। जिनको उस समय की महिलाएं और पुरुष पहना करते थे।
सरस्वती सिंधु सभ्यता का व्यापार
इस सभ्यता के लोग वस्तुओं का आयात और निर्यात भी करते थे। तांबा, टिन, सोना, चांदी और बहुमूल्य पत्थरों को भी दूर-दूर के क्षेत्रों से मंगवाते थे। तांबा राजस्थान व पश्चिमी देश ओमान से मंगवाते थे। कांसा बनाने के लिए तांबे के साथ मिलाए जाने वाली टिन का आयात आधुनिक ईरान व अफगानिस्तान से किया जाता था। सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थरों का आयात गुजरात, ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था।
सरस्वती सिंधु सभ्यता की मोहरे
हड़प्पा के लोग सेलखड़ी की मुहरे बनाते थे। ज्यादातर मोहरे आयताकार हैं जिन पर जानवरों के चित्र मिलते हैं।
मुहरों का प्रयोग एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाने वाले सामान से भरे डिब्बों को चिन्हित करने के लिए किया जाता होगा। डिब्बों पर मुहरबंदी के लिए लाख आदि जैसे वस्तुओं का प्रयोग करके इन मुहरों से छाप लगाते होंगे। जिससे यदि कोई सामान के साथ छेड़-छाड़ करें तो छाप टूट जाती होगी।
मनोरंजन के साधन
इस पाठ से कुछ महत्वपूर्ण तिथियां –
लघु प्रश्न :
प्रश्न 1. सरस्वती सिंधु सभ्यता के अवशेष कहां कहां से प्राप्त हुए हैं?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता के अवशेष बहुत से स्थानों से प्राप्त हुए हैं-
गार्डन चाइल्ड के अनुसार यह सभ्यता 4000 वर्ष पुरानी मानी गई है। जबकि मार्टिमर व्हीलर ने इसका अनुमान 2000 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व के बीच माना है। परंतु नवीन खोजों के अनुसार यह सभ्यता 8000 साल पुरानी है।
सरस्वती नदी आदिबद्री से निकलकर हरियाणा के यमुनानगर, अंबाला, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद, हिसार, फतेहाबाद, सिरसा से बहती हुई राजस्थान व गुजरात होती हुई अरब सागर में गिरती थी।
सिंधु नदी का अधिकतर प्रवाह पाकिस्तान में है। मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ों, बालाकोट जैसे प्रमुख स्थल इसी नदी के किनारे पर हैं।
सरस्वती सिंधु एवं उनकी सहायक नदियों के किनारे मिले अनेक नगर अवशेषों के आधार पर ही इस सभ्यता को सरस्वती सिंधु सभ्यता कहा जाता है।
पहली बार हड़प्पा तब देखने को मिला। जब वहां रेल लाइन बिछाने के लिए रोडे चाहिए थे तो मजदूर नजदीक एक टीले से ईंटों के रोड़े उठा लाए और तब पहली बार यह स्थान अंग्रेजी अधिकारियों की नजर में आया।
1921 ईस्वी में दयाराम साहनी के नेतृत्व में रावी नदी के किनारे हड़प्पा की खुदाई करवाई गई तब एक विशाल नगर के अवशेष निकले। 1922 में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में सिंधु नदी के किनारे मोहनजोदड़ो से भी इसी प्रकार के अवशेष प्राप्त किए गए।
सरस्वती सिंधु सभ्यता की नगर योजना
सरस्वती सिंधु सभ्यता के नगरों के अवशेष हमें दो भागों में मिले हैं। पश्चिमी भाग छोटा था परंतु ऊंचाई पर बना था। इसे दूर्ग क्षेत्र ( नगरदुर्ग ) कहा गया है। पूर्वी भाग बड़ा था जिसे निचला नगर कहां गया है। अधिकतर पुरास्थलों के दोनों हिस्सों को चारदीवारी से घेरा गया था जिसे पक्की ईंटों से बनाया गया था।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार पक्की ईंटों का बना हुआ था। इसमें पानी का रिसाव रोकने के लिए प्लास्टर के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी। इस सरोवर में दो तरफ से उतरने के लिए सीढ़ियां बनी है, चारों ओर कमरे बनाए गए हैं, कुएं से पानी निकालकर इसे भरा जाता था। इसे खाली करने के लिए नाली बनी है।
सरस्वती सिंधु सभ्यता की सड़कें और नालियां
इस सभ्यता की सड़कें 13 फुट से 33 फुट तक चौड़ी होती थी। व गलियों की चौड़ाई 9 से 12 फुट होती थी। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
सड़कों के दोनों ओर नालियां बनी थी। घरों में प्रयोग होने के बाद पानी इन नालियों में आकर गिरता था। यह नालियां पक्की ईंटों से बनी हुई थी और ढकी हुई थी। पानी इन नालियों से बहता हुआ मुख्य नाले में जाकर गिरता था। जो नगर से बाहर पानी को ले जाता था।
सरस्वती सिंधु सभ्यता में भवन निर्माण योजना
इस सभ्यता में घरों का निर्माण एक निश्चित योजना से किया जाता था। आमतौर पर घर दो मंजिल के होते थे। घर में आंगन होते थे तथा रसोईघर, स्नानागार व शौचालय की सुविधाएं होती थी। दरवाजे मुख्य सड़कों की ओर न खुलकर गली में खुलते थे।
सरस्वती सिंधु सभ्यता में जनजीवन
इस सभ्यता के लोग नगरों के अतिरिक्त गांव में भी रहते थे। गांव में रहने वाले लोग कृषि करते थे। ये लोग गेहूं, जौ, दालें, मटर, धान, तिल और सरसों उगाते थे। कृषि बैलों और ऊंटों की सहायता से हल से की जाती थी। नदी व तालाबों से खेतों की सिंचाई करते थे।
यहां के लोग ऊंट, बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी व हाथी आदि जानवर पालते थे। बत्तख, खरगोश, हिरण, मुर्गा व तोता आदि जानवर भी पालते थे। यह सभी जानवर उनके कृषि कार्य, यातायात व भोजन में सहायक थे।
सरस्वती सिंधु सभ्यता में माप तोल
सरस्वती सिंधु सभ्यता में कई स्थानों पर बड़ी और भारी वस्तुओं को तोलने के लिए बांट भी मिले हैं। इसके अलावा पत्थर, शंख, तांबे, कांसे, सोने और चांदी से बनी बहुत सारी वस्तुएं भी प्राप्त की गई हैं।
सरस्वती सिंधु सभ्यता में हार श्रृंगार
इस सभ्यता के लोग बहुत ही सुंदर आकार के सोने-चांदी और पत्थरों के गहने बनाते थे। जिनको उस समय की महिलाएं और पुरुष पहना करते थे।
सरस्वती सिंधु सभ्यता का व्यापार
इस सभ्यता के लोग वस्तुओं का आयात और निर्यात भी करते थे। तांबा, टिन, सोना, चांदी और बहुमूल्य पत्थरों को भी दूर-दूर के क्षेत्रों से मंगवाते थे। तांबा राजस्थान व पश्चिमी देश ओमान से मंगवाते थे। कांसा बनाने के लिए तांबे के साथ मिलाए जाने वाली टिन का आयात आधुनिक ईरान व अफगानिस्तान से किया जाता था। सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थरों का आयात गुजरात, ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था।
सरस्वती सिंधु सभ्यता की मोहरे
हड़प्पा के लोग सेलखड़ी की मुहरे बनाते थे। ज्यादातर मोहरे आयताकार हैं जिन पर जानवरों के चित्र मिलते हैं।
मुहरों का प्रयोग एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाने वाले सामान से भरे डिब्बों को चिन्हित करने के लिए किया जाता होगा। डिब्बों पर मुहरबंदी के लिए लाख आदि जैसे वस्तुओं का प्रयोग करके इन मुहरों से छाप लगाते होंगे। जिससे यदि कोई सामान के साथ छेड़-छाड़ करें तो छाप टूट जाती होगी।
मनोरंजन के साधन
इस सभ्यता के लोगों शतरंज, चौपड़ खेलते थे। खुदाई के दौरान हमें शतरंज व चौपड़ के पासे मिले हैं। उसके अलावा बच्चों के मिट्टी से बने छोटे खिलौने भी मिले हैं।
इतिहास में तिथियां पढ़ने का तरीका
इतिहास में तिथियां पढ़ने का तरीका
- अंग्रेजी में B.C. जिसे हम हिंदी में ई.पू. कहते हैं।
- बी.सी. का अर्थ होता है ‘बिफोर क्राइस्ट’ व ई.पू. का अर्थ होता है ‘ईसा पूर्व।’
- ईसा पूर्व का तात्पर्य यहां ईसा मसीह के जन्म से पहले के वर्षों से है।
- इसके अलावा हम कहीं बार हम अन्य शब्दों का भी प्रयोग करते हैं जैसे :- ए.डी. ( एनो डॉमिनी ), सी.ई. ( कॉमन एरा ), बी.सी.ई. (बिफोर क्राइस्ट एरा )
इस पाठ से कुछ महत्वपूर्ण तिथियां –
- मेहरगढ़ में कपास की खेती लगभग 7000 वर्ष पहले होती थी।
- सरस्वती सिंधु सभ्यता के नगरों के अंत की शुरुआत 3900 वर्ष पहले हो गई थी।
- सरस्वती सिंधु सभ्यता लगभग 8000 वर्ष पुरानी है।
- इस सभ्यता के नगरों की शुरुआत लगभग 4700 वर्ष पहले हो गई थी।
- खुदाई में मिले अवशेषों से हमें पता चलता है कि सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोग वटवृक्ष, तुलसी, शिवलिंग, पशुपति शिव, कूबड़ वाले नंदी, मातृदेवी की पूजा करते थे।
Question Answer
1. _________ ई. में दयाराम साहनी के नेतृत्व में हड़प्पा की खुदाई करवाई गई।
(क) 1992
(ख) 1923
(ग) 1921
(घ) 1920
उत्तर – (ग) 1921
2. बी.सी. का अर्थ है _______।
(क) बिफोर क्राइस्ट
(ख) बिफोर कॉमन
(ग) बिटवीन कॉमन
(घ) इन में से कोई नहीं
उत्तर – (क) बिफोर क्राइस्ट
3. निम्नलिखित में से किस की पूजा सरस्वती सिंधु सभ्यता में नहीं होती थी।
(क) शिव
(ख) विष्णु
(ग) पीपल
(घ) मातृदेवी
उत्तर – (ख) विष्णु
4. बहुमूल्य पत्थरों का आयात गुजरात, ईरान और _______ से किया जाता था।
(क) पाकिस्तान
(ख) अफगानिस्तान
(ग) भूटान
(घ) नेपाल
उत्तर – (ख) अफगानिस्तान
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
1. बालू में स्फटिक पत्थरों के चूर्ण को गोंद में मिलाकर _____ तैयार किया जाता है।
2. तांबा व टिन मिलाकर ___________ तैयार किया जाता है।
3. खुदाई में सबसे अधिक नगर _________ नदी घाटी में मिले हैं।
4. नगरों की बसावट के ______ भाग थे।
5. _______ नगर की खुदाई में बंदरगाह के अवशेष मिले हैं।
उत्तर – 1. फेयांस, 2. कांसा, 3. सरस्वती, 4. दो, 5. लोथल
उचित मिलान करो :
1. तांबा (क) गुजरात
1. _________ ई. में दयाराम साहनी के नेतृत्व में हड़प्पा की खुदाई करवाई गई।
(क) 1992
(ख) 1923
(ग) 1921
(घ) 1920
उत्तर – (ग) 1921
2. बी.सी. का अर्थ है _______।
(क) बिफोर क्राइस्ट
(ख) बिफोर कॉमन
(ग) बिटवीन कॉमन
(घ) इन में से कोई नहीं
उत्तर – (क) बिफोर क्राइस्ट
3. निम्नलिखित में से किस की पूजा सरस्वती सिंधु सभ्यता में नहीं होती थी।
(क) शिव
(ख) विष्णु
(ग) पीपल
(घ) मातृदेवी
उत्तर – (ख) विष्णु
4. बहुमूल्य पत्थरों का आयात गुजरात, ईरान और _______ से किया जाता था।
(क) पाकिस्तान
(ख) अफगानिस्तान
(ग) भूटान
(घ) नेपाल
उत्तर – (ख) अफगानिस्तान
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
1. बालू में स्फटिक पत्थरों के चूर्ण को गोंद में मिलाकर _____ तैयार किया जाता है।
2. तांबा व टिन मिलाकर ___________ तैयार किया जाता है।
3. खुदाई में सबसे अधिक नगर _________ नदी घाटी में मिले हैं।
4. नगरों की बसावट के ______ भाग थे।
5. _______ नगर की खुदाई में बंदरगाह के अवशेष मिले हैं।
उत्तर – 1. फेयांस, 2. कांसा, 3. सरस्वती, 4. दो, 5. लोथल
उचित मिलान करो :
1. तांबा (क) गुजरात
2. सोना (ख) अफगानिस्तान
3. टिन (ग) राजस्थान
4. बहुमूल्य पत्थर (घ) कर्नाटक
उत्तर –
उत्तर –
1. तांबा (ग) राजस्थान
2. सोना (घ) कर्नाटक
3. टिन (ख) अफगानिस्तान
4. बहुमूल्य पत्थर (क) गुजरात
4. बहुमूल्य पत्थर (क) गुजरात
निम्नलिखित कथनों में सही (✓)अथवा गलत (x) का निशान लगाइए:
- सरस्वती सिंधु सभ्यता में बैल और ऊंटों की सहायता से हल से कृषि की जाती थी (✓)
- अनेक मनके कार्नेलियन पत्थरों से बनाए गए थे (✓)
- धोलावीरा में बंदरगाह के अवशेष मिले हैं जहां से प्रमाणित होता है कि विदेशों से भी व्यापार होता था। (x)
- सरस्वती सिंधु सभ्यता का सबसे विस्तृत स्थान राखीगढ़ी गुरुग्राम में है। (x)
लघु प्रश्न :
प्रश्न 1. सरस्वती सिंधु सभ्यता के अवशेष कहां कहां से प्राप्त हुए हैं?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता के अवशेष बहुत से स्थानों से प्राप्त हुए हैं-
हड़प्पा
मोहनजोदड़ो
लोथल
कालीबंगा
चान्हूदड़ो
मिताथल
बनावली
राखीगढ़ी
प्रश्न 2. नदियों का सभ्यता से क्या संबंध है?
उत्तर – नदियों का क्षेत्र बहुत अधिक उपजाऊ होता है। अच्छी खेती होने की वजह से बहुत सारी सभ्यताएं नदियों के किनारों के पास जाकर बस गई। जिससे उन्हें खाने के लिए अनाज और पीने के लिए पानी की सुविधाओं के लिए भटकना नहीं पड़ा। सरस्वती सिंधु सभ्यता भी ऐसी ही एक सभ्यता है।
प्रश्न 3. सरस्वती सिंधु सभ्यता के नगरों के बारे में लोगों को कैसे पता चला?
उत्तर – पहली बार हड़प्पा तब देखने को मिला। जब वहां रेल लाइन बिछाने के लिए रोडे चाहिए थे तो मजदूर नजदीक एक टीले से ईंटों के रोड़े उठा लाए और तब पहली बार यह स्थान अंग्रेजी अधिकारियों की नजर में आया। 1921 ई. में दयाराम साहनी के नेतृत्व में रावी नदी के किनारे हड़प्पा की खुदाई करवाई गई तब एक विशाल नगर के अवशेष निकले। 1922 में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में सिंधु नदी के किनारे मोहनजोदड़ो से भी इसी प्रकार के अवशेष प्राप्त किए गए।
प्रश्न 4. सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोगों के मनोरंजन के साधन क्या थे?
उत्तर – इस सभ्यता के लोगों शतरंज, चौपड़ खेलते थे। खुदाई के दौरान हमें शतरंज व चौपड़ के पासे मिले हैं। उसके अलावा बच्चों के मिट्टी से बने छोटे खिलौने भी मिले हैं।
प्रश्न 5. सरस्वती सिंधु सभ्यता की मुहरों का आकार कैसा था और उनकी आवश्यकता क्यों पड़ती थी?
उत्तर – हड़प्पा के लोग सेलखड़ी की मुहरे बनाते थे। ज्यादातर मोहरे आयताकार हैं जिन पर जानवरों के चित्र मिलते हैं। मुहरों का प्रयोग एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाने वाले सामान से भरे डिब्बों को चिन्हित करने के लिए किया जाता होगा। डिब्बों पर मुहरबंदी के लिए लाख आदि जैसे वस्तुओं का प्रयोग करके इन मुहरों से छाप लगाते होंगे। जिससे यदि कोई सामान के साथ छेड़-छाड़ करें तो छाप टूट जाती होगी।
आइए विचार करें :
प्रश्न 1. सरस्वती सिंधु सभ्यता में उत्पादन के लिए कच्चा माल किन किन क्षेत्रों से मंगवाते थे?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता में उत्पादन के लिए कच्चा माल अलग अलग क्षेत्रों से मंगवाते थे। तांबा राजस्थान व पश्चिमी देश ओमान से मंगवाते थे। कांसा बनाने के लिए तांबे के साथ मिलाए जाने वाली टिन का आयात आधुनिक ईरान व अफगानिस्तान से किया जाता था। सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थरों का आयात गुजरात, ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था।
प्रश्न 2. सरस्वती सिंधु सभ्यता कालीन नगर निर्माण योजना का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता के नगरों के अवशेष हमें दो भागों में मिले हैं। पश्चिमी भाग छोटा था परंतु ऊंचाई पर बना था। इसे दूर्ग क्षेत्र ( नगरदुर्ग ) कहा गया है। पूर्वी भाग बड़ा था जिसे निचला नगर कहां गया है। अधिकतर पुरास्थलों के दोनों हिस्सों को चारदीवारी से घेरा गया था जिसे पक्की ईंटों से बनाया गया था। इस सभ्यता की सड़कें 13 फुट से 33 फुट तक चौड़ी होती थी। व गलियों की चौड़ाई 9 से 12 फुट होती थी। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
प्रश्न 3. किन आधारों पर कहा जा सकता है कि सरस्वती सिंधु सभ्यता में कपड़े का प्रयोग किया जाता था?
उत्तर – मोहनजोदड़ो से कपड़े के कुछ टुकड़ों के अवशेष प्राप्त किए गए हैं। पक्की मिट्टी तथा फेयांस से बनी तकलियां सूत कताई का संकेत देती हैं। लगभग 7000 साल पहले मेहरगढ़ में कपास की खेती होती थी। इन सब तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि सरस्वती सिंधु सभ्यता में कपड़ों का प्रयोग किया जाता था।
प्रश्न 4. सरस्वती सिंधु सभ्यता के निवासियों के महत्वपूर्ण व्यवसाय ‘कृषि’ और ‘पशुपालन’ पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – इस सभ्यता के गांव में रहने वाले लोग कृषि करते थे। ये लोग गेहूं, जौ, दालें, मटर, धान, तिल और सरसों उगाते थे। कृषि बैलों और ऊंटों की सहायता से हल से की जाती थी। नदी व तालाबों से खेतों की सिंचाई करते थे। यहां के लोग ऊंट, बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, बत्तख, खरगोश, हिरण, मुर्गा, तोता व हाथी आदि जानवर पालते थे।
प्रश्न 5. इतिहासकारों के अनुसार सरस्वती सिंधु सभ्यता के नष्ट होने के क्या कारण हैं?
उत्तर – इस सभ्यता के पतन के एक नहीं बल्कि अनेक कारण उत्तरदाई रहे होंगे। नीचे पतन के कुछ प्रमुख कारण लिखे गए हैं:-प्रशासनिक शिथिलता – बस्ती का आकार सीमित होने के कारण और स्वच्छता में कमी के कारण यह सभ्यता समाप्त हो गई।
जलवायु परिवर्तन – वर्षा कम होने के कारण तथा सरस्वती नदी का पानी सूखने की वजह से उनका पतन हुआ।
बाढ़ – मोहनजोदड़ो, चान्हुदड़ो, लोथल और भगतराव के उत्खनन में बाढ़ के साक्ष्य भी मिले हैं। यह भी पतन का कारण हो सकता है।
विदेशी व्यापार में गतिरोध – इस सभ्यता के विदेशी व्यापार में कमी आने के कारण आर्थिक ढांचा कमजोर हो गया। जिसके कारण बहुमूल्य वस्तुओं की जगह स्थानीय उत्पादन की मांग बढ़ी और लोगों के जीवन स्तर में बहुत भारी गिरावट आई।
महामारी – मोहनजोदड़ो से प्राप्त 42 मानव कंकाल के अध्ययन से पता चला कि उनमें से 41 की मौत मलेरिया से हुई थी। यह भी इस सभ्यता के पतन का कारण हो सकता है।
मोहनजोदड़ो
लोथल
कालीबंगा
चान्हूदड़ो
मिताथल
बनावली
राखीगढ़ी
प्रश्न 2. नदियों का सभ्यता से क्या संबंध है?
उत्तर – नदियों का क्षेत्र बहुत अधिक उपजाऊ होता है। अच्छी खेती होने की वजह से बहुत सारी सभ्यताएं नदियों के किनारों के पास जाकर बस गई। जिससे उन्हें खाने के लिए अनाज और पीने के लिए पानी की सुविधाओं के लिए भटकना नहीं पड़ा। सरस्वती सिंधु सभ्यता भी ऐसी ही एक सभ्यता है।
प्रश्न 3. सरस्वती सिंधु सभ्यता के नगरों के बारे में लोगों को कैसे पता चला?
उत्तर – पहली बार हड़प्पा तब देखने को मिला। जब वहां रेल लाइन बिछाने के लिए रोडे चाहिए थे तो मजदूर नजदीक एक टीले से ईंटों के रोड़े उठा लाए और तब पहली बार यह स्थान अंग्रेजी अधिकारियों की नजर में आया। 1921 ई. में दयाराम साहनी के नेतृत्व में रावी नदी के किनारे हड़प्पा की खुदाई करवाई गई तब एक विशाल नगर के अवशेष निकले। 1922 में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में सिंधु नदी के किनारे मोहनजोदड़ो से भी इसी प्रकार के अवशेष प्राप्त किए गए।
प्रश्न 4. सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोगों के मनोरंजन के साधन क्या थे?
उत्तर – इस सभ्यता के लोगों शतरंज, चौपड़ खेलते थे। खुदाई के दौरान हमें शतरंज व चौपड़ के पासे मिले हैं। उसके अलावा बच्चों के मिट्टी से बने छोटे खिलौने भी मिले हैं।
प्रश्न 5. सरस्वती सिंधु सभ्यता की मुहरों का आकार कैसा था और उनकी आवश्यकता क्यों पड़ती थी?
उत्तर – हड़प्पा के लोग सेलखड़ी की मुहरे बनाते थे। ज्यादातर मोहरे आयताकार हैं जिन पर जानवरों के चित्र मिलते हैं। मुहरों का प्रयोग एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाने वाले सामान से भरे डिब्बों को चिन्हित करने के लिए किया जाता होगा। डिब्बों पर मुहरबंदी के लिए लाख आदि जैसे वस्तुओं का प्रयोग करके इन मुहरों से छाप लगाते होंगे। जिससे यदि कोई सामान के साथ छेड़-छाड़ करें तो छाप टूट जाती होगी।
आइए विचार करें :
प्रश्न 1. सरस्वती सिंधु सभ्यता में उत्पादन के लिए कच्चा माल किन किन क्षेत्रों से मंगवाते थे?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता में उत्पादन के लिए कच्चा माल अलग अलग क्षेत्रों से मंगवाते थे। तांबा राजस्थान व पश्चिमी देश ओमान से मंगवाते थे। कांसा बनाने के लिए तांबे के साथ मिलाए जाने वाली टिन का आयात आधुनिक ईरान व अफगानिस्तान से किया जाता था। सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थरों का आयात गुजरात, ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था।
प्रश्न 2. सरस्वती सिंधु सभ्यता कालीन नगर निर्माण योजना का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता के नगरों के अवशेष हमें दो भागों में मिले हैं। पश्चिमी भाग छोटा था परंतु ऊंचाई पर बना था। इसे दूर्ग क्षेत्र ( नगरदुर्ग ) कहा गया है। पूर्वी भाग बड़ा था जिसे निचला नगर कहां गया है। अधिकतर पुरास्थलों के दोनों हिस्सों को चारदीवारी से घेरा गया था जिसे पक्की ईंटों से बनाया गया था। इस सभ्यता की सड़कें 13 फुट से 33 फुट तक चौड़ी होती थी। व गलियों की चौड़ाई 9 से 12 फुट होती थी। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
प्रश्न 3. किन आधारों पर कहा जा सकता है कि सरस्वती सिंधु सभ्यता में कपड़े का प्रयोग किया जाता था?
उत्तर – मोहनजोदड़ो से कपड़े के कुछ टुकड़ों के अवशेष प्राप्त किए गए हैं। पक्की मिट्टी तथा फेयांस से बनी तकलियां सूत कताई का संकेत देती हैं। लगभग 7000 साल पहले मेहरगढ़ में कपास की खेती होती थी। इन सब तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि सरस्वती सिंधु सभ्यता में कपड़ों का प्रयोग किया जाता था।
प्रश्न 4. सरस्वती सिंधु सभ्यता के निवासियों के महत्वपूर्ण व्यवसाय ‘कृषि’ और ‘पशुपालन’ पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – इस सभ्यता के गांव में रहने वाले लोग कृषि करते थे। ये लोग गेहूं, जौ, दालें, मटर, धान, तिल और सरसों उगाते थे। कृषि बैलों और ऊंटों की सहायता से हल से की जाती थी। नदी व तालाबों से खेतों की सिंचाई करते थे। यहां के लोग ऊंट, बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, बत्तख, खरगोश, हिरण, मुर्गा, तोता व हाथी आदि जानवर पालते थे।
प्रश्न 5. इतिहासकारों के अनुसार सरस्वती सिंधु सभ्यता के नष्ट होने के क्या कारण हैं?
उत्तर – इस सभ्यता के पतन के एक नहीं बल्कि अनेक कारण उत्तरदाई रहे होंगे। नीचे पतन के कुछ प्रमुख कारण लिखे गए हैं:-प्रशासनिक शिथिलता – बस्ती का आकार सीमित होने के कारण और स्वच्छता में कमी के कारण यह सभ्यता समाप्त हो गई।
जलवायु परिवर्तन – वर्षा कम होने के कारण तथा सरस्वती नदी का पानी सूखने की वजह से उनका पतन हुआ।
बाढ़ – मोहनजोदड़ो, चान्हुदड़ो, लोथल और भगतराव के उत्खनन में बाढ़ के साक्ष्य भी मिले हैं। यह भी पतन का कारण हो सकता है।
विदेशी व्यापार में गतिरोध – इस सभ्यता के विदेशी व्यापार में कमी आने के कारण आर्थिक ढांचा कमजोर हो गया। जिसके कारण बहुमूल्य वस्तुओं की जगह स्थानीय उत्पादन की मांग बढ़ी और लोगों के जीवन स्तर में बहुत भारी गिरावट आई।
महामारी – मोहनजोदड़ो से प्राप्त 42 मानव कंकाल के अध्ययन से पता चला कि उनमें से 41 की मौत मलेरिया से हुई थी। यह भी इस सभ्यता के पतन का कारण हो सकता है।
Important Question Answer
प्रश्न 1. सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोगों के मनोरंजन के साधन क्या थे?
उत्तर – इस सभ्यता के लोगों शतरंज, चौपड़ खेलते थे। खुदाई के दौरान हमें शतरंज व चौपड़ के पासे मिले हैं। उसके अलावा बच्चों के मिट्टी से बने छोटे खिलौने भी मिले हैं।
प्रश्न 2. सरस्वती सिंधु सभ्यता की मुहरों का आकार कैसा था और उनकी आवश्यकता क्यों पड़ती थी?
उत्तर – हड़प्पा के लोग सेलखड़ी की मुहरे बनाते थे। ज्यादातर मोहरे आयताकार हैं जिन पर जानवरों के चित्र मिलते हैं। मुहरों का प्रयोग एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाने वाले सामान से भरे डिब्बों को चिन्हित करने के लिए किया जाता होगा। डिब्बों पर मुहरबंदी के लिए लाख आदि जैसे वस्तुओं का प्रयोग करके इन मुहरों से छाप लगाते होंगे। जिससे यदि कोई सामान के साथ छेड़-छाड़ करें तो छाप टूट जाती होगी।
प्रश्न 3. सरस्वती सिंधु सभ्यता के निवासियों के महत्वपूर्ण व्यवसाय ‘कृषि’ और ‘पशुपालन’ पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – इस सभ्यता के गांव में रहने वाले लोग कृषि करते थे। ये लोग गेहूं, जौ, दालें, मटर, धान, तिल और सरसों उगाते थे। कृषि बैलों और ऊंटों की सहायता से हल से की जाती थी। नदी व तालाबों से खेतों की सिंचाई करते थे। यहां के लोग ऊंट, बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, बत्तख, खरगोश, हिरण, मुर्गा, तोता व हाथी आदि जानवर पालते थे।
प्रश्न 4. सरस्वती सिंधु सभ्यता में उत्पादन के लिए कच्चा माल किन किन क्षेत्रों से मंगवाते थे?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता में उत्पादन के लिए कच्चा माल अलग अलग क्षेत्रों से मंगवाते थे। तांबा राजस्थान व पश्चिमी देश ओमान से मंगवाते थे। कांसा बनाने के लिए तांबे के साथ मिलाए जाने वाली टिन का आयात आधुनिक ईरान व अफगानिस्तान से किया जाता था। सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थरों का आयात गुजरात, ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था।
प्रश्न 5. सरस्वती सिंधु सभ्यता कालीन नगर निर्माण योजना का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता के नगरों के अवशेष हमें दो भागों में मिले हैं। पश्चिमी भाग छोटा था परंतु ऊंचाई पर बना था। इसे दूर्ग क्षेत्र ( नगरदुर्ग ) कहा गया है। पूर्वी भाग बड़ा था जिसे निचला नगर कहां गया है। अधिकतर पुरास्थलों के दोनों हिस्सों को चारदीवारी से घेरा गया था जिसे पक्की ईंटों से बनाया गया था। इस सभ्यता की सड़कें 13 फुट से 33 फुट तक चौड़ी होती थी। व गलियों की चौड़ाई 9 से 12 फुट होती थी। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
प्रश्न 6. सरस्वती सिंधु सभ्यता कालीन भवन निर्माण योजना का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर – इस सभ्यता में घरों का निर्माण एक निश्चित योजना से किया जाता था। आमतौर पर घर दो मंजिल के होते थे। घर में आंगन होते थे तथा रसोईघर, स्नानागार व शौचालय की सुविधाएं होती थी। दरवाजे मुख्य सड़कों की ओर न खुलकर गली में खुलते थे।
प्रश्न 7. सरस्वती सिंधु सभ्यता में लोग किसकी पूजा करते थे?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोग वटवृक्ष, तुलसी, शिवलिंग, पशुपति शिव, कूबड़ वाले नंदी, मातृदेवी की पूजा करते थे।
प्रश्न 1. सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोगों के मनोरंजन के साधन क्या थे?
उत्तर – इस सभ्यता के लोगों शतरंज, चौपड़ खेलते थे। खुदाई के दौरान हमें शतरंज व चौपड़ के पासे मिले हैं। उसके अलावा बच्चों के मिट्टी से बने छोटे खिलौने भी मिले हैं।
प्रश्न 2. सरस्वती सिंधु सभ्यता की मुहरों का आकार कैसा था और उनकी आवश्यकता क्यों पड़ती थी?
उत्तर – हड़प्पा के लोग सेलखड़ी की मुहरे बनाते थे। ज्यादातर मोहरे आयताकार हैं जिन पर जानवरों के चित्र मिलते हैं। मुहरों का प्रयोग एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाने वाले सामान से भरे डिब्बों को चिन्हित करने के लिए किया जाता होगा। डिब्बों पर मुहरबंदी के लिए लाख आदि जैसे वस्तुओं का प्रयोग करके इन मुहरों से छाप लगाते होंगे। जिससे यदि कोई सामान के साथ छेड़-छाड़ करें तो छाप टूट जाती होगी।
प्रश्न 3. सरस्वती सिंधु सभ्यता के निवासियों के महत्वपूर्ण व्यवसाय ‘कृषि’ और ‘पशुपालन’ पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – इस सभ्यता के गांव में रहने वाले लोग कृषि करते थे। ये लोग गेहूं, जौ, दालें, मटर, धान, तिल और सरसों उगाते थे। कृषि बैलों और ऊंटों की सहायता से हल से की जाती थी। नदी व तालाबों से खेतों की सिंचाई करते थे। यहां के लोग ऊंट, बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, बत्तख, खरगोश, हिरण, मुर्गा, तोता व हाथी आदि जानवर पालते थे।
प्रश्न 4. सरस्वती सिंधु सभ्यता में उत्पादन के लिए कच्चा माल किन किन क्षेत्रों से मंगवाते थे?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता में उत्पादन के लिए कच्चा माल अलग अलग क्षेत्रों से मंगवाते थे। तांबा राजस्थान व पश्चिमी देश ओमान से मंगवाते थे। कांसा बनाने के लिए तांबे के साथ मिलाए जाने वाली टिन का आयात आधुनिक ईरान व अफगानिस्तान से किया जाता था। सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थरों का आयात गुजरात, ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था।
प्रश्न 5. सरस्वती सिंधु सभ्यता कालीन नगर निर्माण योजना का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता के नगरों के अवशेष हमें दो भागों में मिले हैं। पश्चिमी भाग छोटा था परंतु ऊंचाई पर बना था। इसे दूर्ग क्षेत्र ( नगरदुर्ग ) कहा गया है। पूर्वी भाग बड़ा था जिसे निचला नगर कहां गया है। अधिकतर पुरास्थलों के दोनों हिस्सों को चारदीवारी से घेरा गया था जिसे पक्की ईंटों से बनाया गया था। इस सभ्यता की सड़कें 13 फुट से 33 फुट तक चौड़ी होती थी। व गलियों की चौड़ाई 9 से 12 फुट होती थी। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
प्रश्न 6. सरस्वती सिंधु सभ्यता कालीन भवन निर्माण योजना का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर – इस सभ्यता में घरों का निर्माण एक निश्चित योजना से किया जाता था। आमतौर पर घर दो मंजिल के होते थे। घर में आंगन होते थे तथा रसोईघर, स्नानागार व शौचालय की सुविधाएं होती थी। दरवाजे मुख्य सड़कों की ओर न खुलकर गली में खुलते थे।
प्रश्न 7. सरस्वती सिंधु सभ्यता में लोग किसकी पूजा करते थे?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोग वटवृक्ष, तुलसी, शिवलिंग, पशुपति शिव, कूबड़ वाले नंदी, मातृदेवी की पूजा करते थे।
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